Thursday, December 31, 2009

nav varsh ka abhinandan

नव वर्ष का अभिनन्दन.
२०१०


नव वर्ष का है अभिनन्दन, अभिनव वन्दन.
मंगलमय हो वर्ष - सन दो हजार दस.
ढेरों खुशियां लाये, हो चहुं ओर शांति.
आशायें हों फलीभूत,शान्ति ही बने क्रान्ति.
एक बनें सब देश, भुला कर द्वेष.
मंगल ही मंगल हो, भू मंडल पर शेष.

मां का आंचल स्वर्ग बने, ना बच्चा रोये.
तन पर कपडा, भूखे पेट ना कोई सोये.
सभी धर्म - सम्प्रदाय बराबर, बैर ना होये.
शिक्षा का प्रसार-बने हथियार, ग्य़ान जो होये.
आतंकवाद की बडी चुनौती, निबटा लेंगे.
पर्यावरण बचा, हम सब को बचा ही लेंगे.

जीवन - कविता के मधुर बोल.
घर - आंगन गूंजें डोल डोल.
कोयल की मीठी कूक बने.
अल - सुभह जगाये, गीत बने.
जन जन से दूर, नफरत-बदबू.
हर ओर बहे, भीनी - खुशबू.

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Tuesday, October 27, 2009

रोटी का टुकडा


१-रोटी के एक टुकडे,
की आस में,
गरीब के मासूम बेटे,
की खामोश निगाहें,
पूछ रहीं थी एक सवाल.
क्या आप ?, हम,
दे पायेंगे उसे जबाब.
शायद नहीं !
इसीलिये वह बेचारा,
निराशा में मुंह फेर कर,
एक बार फिर,
मां के फटे-आंचल में,
असफल कोशिश में,मुंह छुपाने की,
फिर दूसरी ओर,
ताकने लगा.
शायद अबकी बार,
कहीं से, रोटी का,
सिर्फ एक टुकडा,
हाथ में आ जाये.
बस ! और कुछ नहीं,
सिर्फ, रोटी का एक टुकडा.

२-दुकान से लौट कर,
सेठ जी ने ज्यों ही,
रोटी का पहला टुकडा,
बेमन से, मुंह में डाला.
स्वाद को कसैला बना,
चीख पडे !
फिर वही सब्जी ?
कितनी बार कहा है,
मुझे गोभी पसन्द नहीं.
बेचारी नौकरानी !
क्या करती ? डर गयी.
लेकिन मालिक !
यह तो पत्ता-गोभी है.
सेठ जी गरज उठे,
हरामजादी, बेहया.
जबान लडाती है.
कितनी बार समझाया.
लेकिन फिर वही !
लगता है तुझे,
सबक सिखाना ही पडेगा.
जल्दबाजी में उठे,
चूल्हे पर भगौने में,
खौलता पानी,
नौकरानी पर उंडेल दिया.
बेबस लडकी की चीत्कार,
फैंकी-रोटी के,
चन्द टुकडों में दब गयी.

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Sunday, October 18, 2009

vilupta hue daynosore.

विलुप्त हुए डायनोसोर.


बात बहुत प्राचीन, स्रष्टी की शुरुवात में.
गिने-चुने थे जीव, बनस्पति बहुतायत में.
सभी जीव, स्वच्छन्द, निरंकुश जीवन-व्यापन.
अपनी-अपनी चिन्ता थी, ढूंढें अपनापन.
सभी डरे, भयभीत, कहीं से खोजें भोजन.
भरें पेट, कैसे भी, कहीं भी,सब-कुछ भोजन.
जीवो: जीवश्य भोजनम. को सिध्दान्त बनाया.
ताकि भरें पेट कुछ, कुछ का जीवन खाया.

प्रक्रती का यह चक्र, जीवन-विकास था.
किसी एक की मौत, दूसरे का जीवन था.
लुका-छिपी का खेल, खेलते थे जंगल में.
कौन बनेगा ग्रास, किसी का, भूखेपन में.
फिर भी हुआ, विकास-चक्र गति पाई.
बडे जीव धरती पर आये, छोटों ने संख्या बढाई.
जीवन की आपा-धापी में, कुछ ने बढत बनाई.
थे अब भी भयभीत सभी, पर जीवन-जोत जगाई.

समय-चक्र ने पलटा खाया, डायनोसोर-युग आया.
था अब तक का विशालतम प्राणी, आधिपत्य जमाया.
डायनोसोर, निर्विरोध, निरंकुश, प्रथ्वी के राजा थे.
जहां भी जाते, तबाही मचाते, डरे सभी प्राणी थे.
बहुत समय तक चला यही सब, तांडव डायनोसोर का.
आपस में टकराव बढा, बन झगडा डायनोसोर का.
कम ताकतवर मारे गये, थी संख्या लगी घटने.
थे कुछ और भी कारण, अब हालात लगे बिगडने.

समय बदलता रहा, अकाल ने डेरा डाला.
ना पानी, ना बनस्पति, जिसने जीवों को पाला.
त्राही-त्राही सब ओर, मर रहे थे प्राणी बिन-मौत.
जिन्दा प्राणी, लाशों को खा, भगा रहे थे मौत.
डायनोसोर भी शामिल इनमें, बेचारे लाचार.
पेड-पौधे भी खत्म, जो अब तक, थे जीवन-आधार.
कुछ वैग्यानिक कहते, कुछ घटनायें भी थी जिम्मेदार.
इस प्रथ्वी पर तभी भयानक, विस्फोट हुए बारंबार.

चारों तरफ, धुंआ और लावा, ज्वालामुखियों ने फैलाया.
दिन-दोपहर, हुई रात भयानक, अन्धकार था छाया.
आक्सीजन हुई खत्म, धरा पर, जीवन शेष न पाया.
प्रलय हुई सम्पूर्ण, कुछ नही बचा, न कोई साया.
डायनोसोर विलुप्त हुए, प्रथ्वी के राजा - रानी.
समय-चक्र था घूम गया, बस यही कहानी.
समय समय की बात, समय सब से बलशाली.
बदला समय, मिले मिट्टी में, थे जो गौरवशाली.

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Friday, October 16, 2009

aao sab-mil deep jalaaye.

आओ सब मिल, दीप जलायें


आओ सब मिल, दीप जलायें.
दीपावलि यादगार मनायें.
शिक्षा का उजियारा फैले,
घर-घर विद्या-दीप जलायें.
बेटा-बेटी, सब हैं बराबर,
समान अवसर, पालन-पोषण.
आगे बढें, पढें, अन्वेषण.
अनपढ-शाप, से मुक्ति दिलायें.
आओ सब मिल दीप जलायें.

सभी धर्म, सम्प्रदाय बराबर.
ऊंच-नीच, सब हैं आडम्बर.
सबको अवसर, सबका हक है,
भेद-भाव, झगडा नाहक है.
अब हम नई शुरुवात करेंगे,
मिल-जुल, मसले निबटा लेंगे.
भाई-चारा, हमारा नारा.
मानवता का पाठ पढायें.
आओ सब मिल दीप जलायें.

हम हों किसी प्रदेश के वासी,
या कोई भी, भाषा- भाषी.
रंग-रूप, खान-पान, अलग हों,
मौसम या घर-द्वार अलग हों.
सब हैं भारत-मां को प्यारे.
मां की रक्षा धर्म हमारा.
हम सब एक हैं, देश हमारा.
भारत-मां को शीश नवायें,
आओ सब मिल दीप जलायें.

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Wednesday, October 14, 2009

ये भी क्या दीवाली है ?


दीवाली का मौसम आये,
दिए, मिठाई,खुशियां लाये.
बाजारों की रौनक गायब,
बच्चों में उत्साह नहीं.
कमर तोड दी मंहगाई ने,
चाह तो है पर राह नहीं.
घर की थाली, खाली है.
ये भी क्या दीवाली है ?

दीवाली की बात अधूरी,
रिश्तों में मिठास नहीं.
भाई ही भाई का दुश्मन,
गैरों की तो बात नहीं.
गले-मिलना, है रिवाज पुराना,
चरण-स्पर्श, का गया जमाना.
हाय-हलो, की बोली है.
ये भी क्या दीवाली है ?

दीवाली, दीपों की पंक्ति,
लडियां हैं, पर दिए नहीं
जहर बने हैं, दूध, मिठाई,
नकली-माल की कमी नहीं.
प्लास्टिक- फूलों, से है शोभा,
मिट्टी की सोंधी-महक नहीं.
गुजिया, बाजार वाली है.
ये भी क्या दीवाली है ?

शोर-शराबा और हुडदंग,
दीवाली का नया रंग.
पटाखे घोल रहे, जहर हवा में,
आग लगे, जैसे नोटों में.
लेना सांस, हुआ दुश्वार,
बच्चे, बूढे, सब परेशान.
पर्यावरण की होली है,
ये भी क्या दीवाली है ?

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Monday, October 12, 2009



त्यौहारों का मौसम आया,
ईद, दशहरा और दीवाली.
लेकिन फिर भी जोश नही है,
जेबैं खाली, थाली खाली.
प्याज रुलाती थी पहले भी,
अब आलू भी साथ हो लिये.
सब्जि मंहगी हो गयी इतनी,
आम-आदमी कैसे जिये ?

चीनी मंहगी, दालें मंहगी,
दूध, तेल की बात करें क्या ?
रोज मजूरी, तब हो खाना,
वो बेचारे, अब खायें क्या ?
ऎसे में त्यौहार आ गये,
कुछ कडवा, कुछ नीम-चढा.
अब ऊपर वाला ही मालिक,
खत्म हुआ, घर में जो पडा.

जमाखोर, कालाबाजारी, मिली-भगत.
मौज उडा रहे, बिचौलिये.
वसूल रहे हैं, दो के दस,
दुकानदार बन सुभाषिये.
बेबस जनता, तमाशबीन सरकार.
फरियाद किसे, कहां पुकार ?
दिखाई ना दे, जनता पर जुल्म,
कौन जगाये, सोई सरकार ?

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Monday, October 5, 2009

badalata mousam.

बदलता मौसम.


दशहरे के बाद गरमी ने,
थक कर हथियार डाल दिये.
सरदी आने में, समय बाकी है.
घोंसले, बनाने चिडिय़ों ने शुरु किये,
फसल पक गयी, या पकने वाली है.
यह खबर किसानों तक,
चिडियां ही लायीं हैं.
फसल पकने की खुशी,
किसानों के साथ, पक्षियों को भायी है.
तभी तो, पक्षियों के कोलाहल ने,
प्यार की मीठी धुन, सुनायी है.
हां, ये बात अलग है,
कि जीवन की भाग-दौड और प्र्दुषण ने,
हमें अंधा, बहरा बना दिया है.
सब-कुछ देख, जान कर भी,
अनजान बने या बना दिया है.

मौसम की तरुणाई,
पशु-पक्षियों को भी है भायी.
तभी तो नीलगगन में,
मनमोहक आक्रतियां बनाते,
प्यारी प्यारी आवाजों से,
बरबस ध्यान खींचते,
रुपहली शाम की, इन्द्रधनुषी आभा,
में हैं चार-चांद लगाते.
एक फसल पक गयी,
तो दूसरी बोने की तैयारी है.
फसल-चक्र या यूं कहें, जीवन-चक्र,
अनवरत चलता रहेगा.
मौसम बदलते रहेंगे.
आज हम हैं, कल और होंगे.
फिर चिडियां घोंसले बनायेंगी.
पक्षियों की कतारें, गगन में लहरायेंगी.

गरमी का मौसम जाते जाते,
दे गया यह सन्देश.
समय के विपरीत,जो अडे,
बह गये, योद्धा बडे बडे.
समय-चक्र चलता ही रहेगा,
तालमेल बैठाना है.
कठोर इतना भी न बनो,
कि टूट्ना पडे.
व्यक्ति सफल है वही,
बदलता-मौसम कहे पुकार,
सोच-समझ चल-डोल रे मानव,
देख समय की धार.
जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, यहां तक,
पेड-पौधे और बनस्पति,
मौसम के अनुसार ढालते,
यक्ष प्रश्न जीवन-रक्षा.
इसीलिये प्रक्रति को बचायें,
जीवन फूले- फले, सुरक्षा.

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Saturday, October 3, 2009

हे ! राम.


अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा-दिवस, दो अक्टूबर,
मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्मदिन.
भारत की विश्व को देन, अब,
देश से ज्यादा, विदेशों में मनाया जाने लगा है.
मेरे देश के लोग, और सरकारी तन्त्र.
भूलने लगे हैं, बापू के बताये मूल-मन्त्र.
राजघाट पर नेताओं का, फूल चढाना,
अब, औपचारिकता मात्र बन गयी है.
जब कि विदेशों में, आज की परिश्थितियों में,
गांधी जी की प्रासंगिकता, बढ गयी है.

क्या ही अच्छा होता, यदि हम आज भी,
बापू की बतायी सीख, सीख पाते.
ज्यादा कुछ नही, बस गांधी जी के तीन बन्दर.
की कहानी स्वयं समझ पाते.
और आने वाली पीढियों को सुनाते.
गांधी जी की सादगी तो जग जाहिर है,
पर आज शायद, सादगी के अर्थ बदल गये हैं.
आजकल पद-यात्रा, तो अतीत की बात है.
एयर इंडिया की इकोनोमी-क्लास को,
नेता जी कैटल-क्लास बता रहे हैं.

गांधी जी के सपनों का चमकता भारत,
न जाने कहां, खो गया है ?
सत्य, अहिंसा, तो अब किताबी-बातें हैं.
मंत्री, मुख्य-मंत्री या अधिकारी,
पुलिस, प्रशासन, जज, है जिन पर,
कानून-व्यवस्था की भारी जिम्मेदारी.
सबके हैं रंगे हाथ, भ्रष्टाचार, रिश्वत-खोरी.
रक्षक ही बन बैठे भक्षक, चोरी और सीना-जोरी.
यह तो सिर्फ बानगी है, तस्वीर काफी धुंधली है.
हे राम ! भेज दो गांधी, गांधी की जरुरत है.

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Wednesday, September 30, 2009

ravan kabhee nahi marta.

रावण कभी नहीं मरता.


हर साल, दशहरे के दिन,
सैकडों गांव, शहर, मौहल्लों में,
हजारों रावण जलाये जाते हैं.
लेकिन रावण कभी नहीं मरता.
यदि रावण सचमुच मर जाये,
तो दशहरे का यह त्यौहार,
नीरस और फीका पड जाये.
महीनों,हप्तों की, वह तैयारियां,
रामलीला के विभिन्न पात्रों,
का चयन, मेकअप, और जोश.
रावण-परिवार के पुतलों का,
कारोबार चौपट हो जाये.
या दूसरे शब्दों में, यूं कहें,
मर्यादा-पुरुषोत्तम, ष्री राम,
का सम्पूर्ण अस्तित्व,
ही खतरे में पड जाये.

हमारे हिन्दु समाज में,
ष्री राम को भगवान का दर्जा
मिला. और कायम है.
क्योंकि उन्होंने रावण,
जैसे शक्तिशाली दैत्य,
अत्याचारी,व्याभीचारी और अहंकारी,
शासक से जनता को,
हमेशा के लिये मुक्ति दिलाई.
और राम-राज्य स्थापित किया.
तभी से रावण और उसका परिवार,
बन गया प्रतीक, बुराई का.
वर्षों से मना रहे हैं दशहरा.
बुराई पर अच्छाई की जीत.
विजयादशमी के दिन, सांझ को,
रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ,
के पुतले जलाये जाते हैं.
पर रावण कभी नही मरता.

रावण का न मरना, असल में,
हमारे मन की कमजोरी है.
राम और रावण तो हम सब के,
मन के अन्दर के भाव हैं.
आज परिस्थितियां बदल गयी हैं.
रावण राम पर भारी पड रहा है.
क्योंकि, हमने ही मौका दिया है.
हम निश्चय ही उत्तरदायी हैं.
आज के राम की,
इस दयनीय स्थिति के लिये.
जब तक हम अपने अन्दर,
का रावण जिन्दा रखेंगे,
अपहरण, हत्या, बलात्कार होते रहेंगे.
पुतले भी, हर साल जलते रहेंगे.
सालों साल, पुतला फिर है बनता.
क्योंकि रावण कभी नही मरता.

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Tuesday, September 29, 2009

brahmand me kya hum aekele ?

ब्रह्मांड में क्या हम अकेले ?


जुलाई १९६९, अमेरिका के, नील आर्मस्ट्रांग.
और एल्डिरिन बने, इतिहास - पुरुष.
मानव का चन्द्रमा पर, पहला कदम.
बन गया खोज, खोजने का हर्ष.
चालीस साल लग गये, चांद पर.
पानी की खोज, बनेगी सूत्रधार.
भविष्य में, मानव की अंत्रिक्ष-यात्रायें,
संचालन होगा, निर्भर चांद पर.

अभी अनुमान लगाना, नामुमकिन.
हमसे भी अधिक विकसित शायद,
सभ्यतायें, किन्हीं ग्रहों पर,
हैं भी या नहीं, कहना मुश्किल.
कभी-कभी कुछ घटनायें, अजीब,
जगाती कौतूहल, नव-नौन.
न जाने, नक्षत्रों से कौन ?
है देता, हमें निमन्त्रण मौन.

वैग्य़ानिक कुर्ज्वेल की आशा.
नैनो-टैक्नोलोजी, करे दूर निराशा.
मानव सक्षम हो जायेगा.
उमर का बढना, रुक जायेगा.
अमरत्व की ओर बढा कदम,
हजारों वर्ष की आयु, लायेगा.
तब शायद, कुछ जानें सही,
हम मानव अकेले, या नहीं ?

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Friday, September 25, 2009

chalo chand par.

चलो, चांद पर.

दुनिया के अन्त्रिक्ष-इतिहास मे,
भारत का पहला-कदम.
बन गया मील का पत्थर,
वैग्यानिकों का सफल दम-खम.
भारत के अन्त्रिक्ष-वैग्यानिकों के,
बुलन्द हौसलौं का प्रतीक.
चन्द्रयान-एक,बाइस अक्तूबर २००८,
प्रक्षेपण, एक दम सटीक.

भारत का अन्तरिक्ष में बढा कदम,
साबित हुआ लम्बी छ्लांग,
चन्द्रयान का अन्तरिक्ष में, तीन सौ,
बारह दिन का छोटा सांग.
याद रहेगा, चन्द्र्मा की कक्षा के,
३४०० से भी अधिक चक्कर.
कर गये अपना काम, सौ प्रतिशत,
से भी ज्यादा, बढ कर.

हम दुखी थे जरुर, चन्द्रयान-एक,
के असामयिक अन्त पर.
पर रणभूमि में, वीर योद्धा की तरह,
कर चुका था काम, समय पर.
दर्ज कर गया चांद पर पानी,
के सबूत, मिटने से पहले.
धन्य हो गयी भारत-मां, जांबाज,
सपूतों के काम से, कह ले.

पहले भी हमने,’शून्य; रचा,
दुनिया को गिनती सिखलाई,
अब चन्दा पर पानी है,
देख, है दुनिया ललचाई.
एक आस जगी, सपना देखा,
चांद पे बस्ती बसायेंगे.
शुरुवात हो गयी पानी से,
चलो चांद पर, छुट्टियां मनायेंगे.

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Tuesday, September 15, 2009

Birthday-Wish.

सोलह सितम्बर - २००९


सोलह-सितम्बर का दिन फिर आया,
ढेरो खुशिया, साथ लिये.
जन्म - दिन की लाख बधाई,
मम्मी - पापा का स्नेह लिये.
यह दिन, जब-जब भी आये,
ताजा फिर यादे हो जाये.
मा का "दीपू" प्यारा बेटा,
"दीपक" का बचपन, लौटाये.

जोधपुर मे, वह शुभ-घडी,
शुभ-मुहुर्त मे दिन की शुरुवात.
बारह बज कर चार मिनट,
बने गवाह, सौभाग्य की रात.
पन्ख लगा उड चला समय,
जीवन - चक्र गति पाई.
आयु के हर मोड पर तुमने,
मन चाही सफलता लाई.

धन्य वह घडी, हमने जब, प्रभु से,
पुत्र - रत्न धन पाया.
शीश-नमन सौ-बार,और आभार,
प्रभु ने जो यह दिन दिखलाया.
अब है यह सौभाग्य हमारा,
आगे बढ, स्वीकार करे.
प्रभु-इच्छा ही सर्वोपरि है,
जिम्मेदारी वहन करे.

मन मे है, विश्वास लबालब,
हर कठिनाई होगी दूर.
मन चाहा, जीवन-साथी चुन,
जीवन-पथ, खुशिया भरपूर.
मा - पा का आशीर्वाद तुम्हे,
अब देर नही कुछ समय बचा,
सब मिल-जुल कर खुशिया बान्टे,
सपना हो साकार, रचा.

एक बार फिर हमे भरोसा,
ईश्वर राह दिखायेगा.
अपनी भी कोशिश है पूरी,
मन - वान्छित फल आयेगा.
लम्बी-उमर, सफल-जीवन हो,
दामन खुशियो से भर जाये,
बार-बार, दिन यू ही आये,
फूल खिले, चेहरे मुस्काये.

समाप्त.

Sunday, September 13, 2009

हिन्दी - दिवस


आज चौदह सितम्बर, हिन्दी-दिवस है.
शुक्र है अखबार,टी-वी का, आज हिन्दी-दिवस है.
कहने को तो हमारी राष्टर-भाषा हिन्दी है.
लेकिन सरकारी काम-काज,
ज्यादातर अन्ग्रेजी मे ही होता है.
क्षमा करना, इसका अर्थ यह नही,
कि, हिन्दी हमे प्रिय नही,
या हिन्दी मे, राज-भाषा बनने के गुण नही.
असल मे यहा, मामला ही कुछ और है.
हम भारतवासी, अपनी मानसिकता बदल नही पाये है.
आजादी के बासठ वर्ष बाद भी, गुलामी भूल नही पाये है.
शीर्षस्थ पदो पर उदासीनता, और अन्ग्रेजी-प्रेम भी कारण है.
और, जन-मानस मे फैली सामन्ती-सोच,
कि, हिन्दी-ग्य़ान से कुशल-नेत्रत्व सम्भव नही.

हिन्दी का विकास कैसे हो ?
जब हम स्वयम ही,अपने पैरो पर कुल्हाडी मार रहे है.
हिन्दी-पखवाडा मनाने के लिये,
सरकारी-आदेश भी, अन्ग्रेजी मे छ्प रहे है.
लोकसभा और राज्य-सभा मे, नेताओ को,
हिन्दी समझ नही आती या समझना नही चाहते.
इसलिये, अन्ग्रेजी - रुपान्तर जरूरी है.
कभी-कभी नेताओ का, हिन्दी-भाषण भी मजबूरी है.
क्योकि, हिन्दी-भाषी क्षेत्रो के, वोट बटोरना जरुरी है.
फिर भी अन्ग्रेजी अनुवाद के बिना, बात अधूरी है.
काश ! आजादी के बासठ वर्ष बाद,
कम से कम हम इतना समझ पाते,
दूसरो का भी आदर करेन्गे हम.
लेकिन अपनी मा का सम्मान जरुरी है.
हा, अपनी राष्ट्र-भाषा का ग्य़ान जरुरी है.

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Tuesday, September 8, 2009

जीवन : भाग-५
सफ़र.


जीवन का सफ़र, कुछ जाना भी,
लेकिन फिर भी अनजाना है.
कब शुरु हुआ, यह तो है पता.
पर खत्म कहा, नही जाना है.
सामान बान्ध लिया, लम्बा सफ़र,
लेकिन पल की भी खबर नही.
पल-पल को जीना ही बेहतर,
जो मिला उसे खोना भी नही.

जीवन-चक्र नही रुकता है,
इसीलिए चलना होगा.
फूल खिले या कान्टे डग मे,
चलते ही जाना होगा.
चलने का नाम ही जीवन है,
रुक गये तो समझो, सान्स रुकी.
हो सफ़र सुहाना, यत्न करो,
अन्त-घडी, रोके न रुकी.

यह सफ़र बडा ही रोचक है,
चलते है सभी, पर पता नही.
कुछ मिले, बीच मे छूट गये,
होन्गे ये विदा, था ग्य़ात नही.
कभी-कभी लगता है यह,
हम खुशकिश्मत, जो सन्ग मिला.
दूजे पल ही सब छूट गया,
सोचा जो नही, वह दुख मिला.

जीवन के सफर मे, जो भी मिले.
आखिर तो बिछुड ही जाते है.
सिलसिला, यू ही चलता रहता,
हम स्वम कहा रुक पाते है ?
कभी खुशी मिली, तो गम भी है,
दोनो ही जरुरी, जीवन मे.
सुख-दुख की आन्ख-मिचौनी से,
बढता जीवन, घर-आन्गन मे.

जीवन का सफर, हो सुहाना-सफर,
कोशिश हो, हन्से जग सारा.
जब-जब दुख की बदली छाये,
हो चारो तरफ अन्धेरा.
आशा-दीप जला, मन मे,
धर धीरज, कर्म - बसेरा.
जीवन फिर से, मुसकायेगा,
खुशिया बने सवेरा.

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Saturday, September 5, 2009


जीवन : भाग - ४
सन्घर्ष.

जीवन का सन्घर्ष बना, जीवन-विकास का कारण.
लाखो-करोडो वर्षो के सन्घर्ष, बने जीवन-रण.
जब जब कुछ पाया मानव ने,वर्षो का सन्घर्ष फला.
आवश्यकता, आविष्कार की जननी, मन्त्र चला.
सन्घर्ष-चक्र चलता ही रहा, जीवन विकास-गति पाई.
पीछे मुड कर देखा ही नही, मानव-सभ्यता मुस्काई.
सन्घर्ष का इतिहास, बहुत-कुछ सिखा रहा पीढी को.
अब यह हम पर निर्भर है,कुछ जोड बढाये सीढी को.

जीवन के सन्घर्ष आज, चहु -ओर मचा कोलाहल.
दो वर्गो मे बन्टा समाज, सन्घर्ष बना जीवन-हल.
एक के पास तो सब कुछ है, पर पाना चाहे और.
दूजे के पास तो कुछ भी नही,खाना,कपडा,न कही ठौर.
गरीब का सन्घर्ष तो रोज की रोटी, जीना ही मुश्किल है.
कभी-कभी तो वह भी नही, बस सन्घर्ष ही जीवन है.
यक्छ-प्रश्न अब उठता है, क्या यह झगडा नाहक है ?
मानव मानव सभी बराबर, सबका, सब पर हक है.

जीवन की मुस्कान के पीछे, वर्षो का सन्घर्ष लिखा.
कर्म-यग्य से जीवन के सुन्दर सपनो का स्वर्ग दिखा.
जीवन सफल हुआ उसका ,जो कर्म-लक्छ्य़-सन्घर्ष किया.
बिना लक्छ्य, सन्घर्ष बिना, जीवन समझो सपना ही जिया.
भाग्यवाद है अकर्मण्यता, जीवन की असफलता.
बिना कर्म के, भाग्य-भरोसे, जीते जी ही मरता.
इसी लिए तो प्रथ्वी मान्गे, श्रम-जल सीचा उपवन.
तभी फसल लहलहाये खेत मे, पुलकित हो मन भावन.

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Tuesday, September 1, 2009

भ्रम


कभी-कभी मुझे भ्रम हो जाता.
लाख सोच पर समझ न पाता.
अपना देश पराया लगता.
जीवन सपने जैसा लगता.
धरा वही, आकाश वही है.
फिर इन्सा क्यो बदल गया है ?
मानव दानव के चोले मे.
भेष बदल, अपने टोले मे.
अपनो का ही खून पी रहा.
खुद ही आग लगा कर घर को, शोर मचा रहा.

डाक्टर को भगवान मानते.
आज भी इस देश मे.
सफेद कोट के, काले कारनामे.
अपने भारत - देश मे.
नकली डाक्टर, नकली खून.
जानवरो का खून, इन्सानो के लिये.
अन्ग निकाले, इलाज के बहाने.
मौत बान्ट्ते, धन का जुनून.
और भी बहुत कुछ गड्बड - झाला.
पेशे को बदनाम ‘कुछ‘ ने कर डाला.

डा० सर्वपल्ली राधाक्र्श्न्णन और,
बाणभट्ट् के भारत देश मे.
आज डिग्रिया बिक रही सरे-आम.
पद और पैसे के प्रलोभन मे.
शिक्छा हुई, गरीब से दूर.
या गरीब की पहुच शिक्छा से दूर.
भ्रष्टाचार का बोलबाला है.
वी० सी० मन्त्री जी का साला है.
नई पर्तिभा का उदय कैसे हो ?
पूरी की पूरी पर्किर्या मे घोटाला है.

आधुनिकता की भेट चढ रहे.
खून के रिश्ते खून मे डूब रहे.
मा-बाप, भाई-बहन, बेटा-बेटी.
कोई नही पीछे, रिश्तो की डोर टूटी.
निरीह, बेसहारा, बच्चो का क्या होगा ?
पति-पत्नि के टूट्ते रिश्ते, आत्महत्या,
तलाक और आधुनिकता की अन्धी दौड.
क्या वास्तव मे जीवन-पर्गति-सूर्य उगेगा ?
आशा है हम सुधरेगे, जीवन सन्वरेगा.
मेरे इस भ्रम की धुन्ध धुलेगी,सवेरा होगा.

Saturday, August 29, 2009

लज्जा


आज मुझे लज्जा आती है, अपनो के बेगाने पर.
अपने ही दुश्मन बन जाते, मदद पुकारे जाने पर.
कभी-कभी लज्जा आती है, हमने ही यह हाल कएइया.
वरना देश सोने की चेइडॆईय़ाआ, वेइदेशेइयो ने नाम देइया.

सतयुग मे तो एक था रावण, सीता-हरण अभेइशाप बना.
अब अपहरण एक प्रोफेशन है, करोडॊ का कारोबार चला.
पहले अपहरण फएइर बलात्कार,मर्डर या जेइन्दा जला देइया.
इसके बाद फेइरोती ले ली, मानवता शर्म-शार केइया.

मूक-गवाह बने है हम सब, देख समझ भी है अनजान.
बेटी को बली चढा रहे है, बलात्कार कर बन शैतान.
और कही व्याभीचारेइणी बेटी, कत्ल कर रही है खानदान.
मा~और बाप बने है भेइखारी, लावारेइस, लाचार, हे भगवान.

कब तक ? देखने को शापइत हम, चीर-हरण मा-बहनो का.
द्वापर मे था एक दुशासन, अब शासन ही कौरवो का.
फरीयादी ही मुलजिम है अब, सच जो बोले, वह ही फन्सता.
इसीलिये सब जान बचाते,मुन्ह है छिपाते,मरता क्या न करता.

लेकिन यह क्या १ वही आ गया, चला जहा से, प्र्थ्वी गोल.
लज्जा से बचना है यदि, सोचो ! बुधिजिवियो, मुह-खोल.
उपाय ढूढ्ने ही होन्गे अब, बोलो मानवता के बोल.
मुश्किल कुछ भी नही है जग मे, जागो, उठो,समय अनमोल.

--- समाप्त ---

Saturday, July 25, 2009

jeevan bhag - 3

जीवन : भाग - ३


जीवन एक सन्ग्राम, द्वन्द अच्छआई - बुराई.
तय करना होगा हमको, किस ओर हऐ जाई.
द्वन्द - युद्ध यह भारी पड्ता, कभी-कभी सम्बन्धो पर.
धीरज से करे सच का सामना, जीवन के दोराहे पर.
अर्जुन को उपदेश कर्शण का, गीता के अध्याय बने.
शत-पर्तीशत, हम सब पर लागू, आत्मशक्ती ही केन्द्र बने.
कुछ तो लोग कहेगे, लेकिन हम पथ-विचलित ना होगे.
जब भी मोअका आये ऐसा, मन-दिग्दर्शक हम होन्गे.

जब-जब जीवन को जीने मे, मन की शान्ति भन्ग हुई.
समझो गलती हुई कही पर, सजग चेतना हएइ सोई.
मन-विश्लेशण, निश्पछः भाव से, ऐसा क्या हमने हेअ किया.
कारण ढूढ उपाय करे, यदि बचना, जीवन - नर्क जिया.
यू तो गलती सब ही करते, कभी-कभी अनजाने मे.
जीवन - धर्म कहता स्वीकारे, बाकी व्यर्थ गन्वाने मे.
दर्ढ-निश्चय से वादा कर लो, गलती नही दोहरायेगे.
जीवन फिर से मुस्कायेगा, खुशहाली हम लायेन्गे.

जीवन का सन्ग्राम जटिल हेअ, जब-जब मोह-माया मे फन्से.
मानवता की कडी परीछा, दोअलत-लालच, मन मे बन्से.
जीवन-जन्ग जीतने को, कर्तव्य-बोध ले साथ चले.
अपना धर्म निभाना होगा, चाहे जो हालात बने.
जब-जब दुविधा हो मन मे, घिरे हुऐ अपनो के बीच.
देश-धर्म सबसे ऊपर हेअ, पूज्य मही-मन्डल के बीच.
अपना सब-कुछ देकर भी, यदि देश-धर्म को बचा लिया.
समझो सऔदा सस्ता ही है, सब धर्मो का मान किया.

------० -----

Thursday, July 23, 2009

जीवन : भाग - २


यह जीवन है, इस जीवन का, यही है रन्ग - रुप.
यह न सोचो, इसमै अपनी हार है या जीत है.
जीवन उसी का जइसने, समझी यह रीत है.
हमै मेइला क्या ?क्यो यह हो गया ? यह ही तो जीवन है.
यह जेइद छोडॊ, मुन्ह न मोडो, जीवन एक दर्शन है.
यह जीवन है .............

अक्सर ही शेइकायत होती, हमे है मिला क्या ?
क्या कभी है सोचा हमने ? जीवन को देइया क्या ?
भेद ये जाना, तो मुश्किल सब जीवन की आसान बने
सुख - दुख आती जाती छाया, जीवन का दर्पण है
यह जीवन है ............

जीवन है जीने की कला, जो कम लोगो को ही आये
हम मे से है सफल वही, जो भान्प समय को पहचाने
ठीक समय पर, सही ले नेइर्णय, और उसे सम्पउर्ण करे
समय-रेत पर, नेइशान पान्व के, जीवन को अर्पण है
यह जीवन है..............

जब - जब दुविधा छाये मन मे, जीवन एक सन्ग्राम बने.
जीत उसी की नेइश्चित है, जो सन्यम, विवेक से कर्म करे.
सबसे ऊपर देश-धर्म है, फिर अपनो की बारी है.
कुछ कर दे औरो के लिये भी, तभी. धन्य वह छ्ण है.
यह जीवन है...............

_ ० _

Wednesday, July 22, 2009

जीवन - भाग १


यह जीवन हेअ. जीवन क्या हेअ ?
आये कहाँ से हम ? जाना कहाँ हेअ ?
इस जीवन का रह्स्य हेअ क्या ? समझा ना कोई.
भट्कन ये ऐसी, जैसे अन्धा कुआ या खाई.

यह सच हेअ, अल्ला, ईश्वर, गा‘ड, दे ना दिखाई.
लेकिन यह भी उतना ही सच, देख रहा वह सब.
हम क्या करते ? केअसे जीते हेअ,जीवन - अभिनव.
उसका दिया हुआ ही सब-कुछ, लुटा रहे या गवा रहे हम.

हमे पता नही, कब तक हेअ हम ? जाना होगा, यह निश्चित हेअ.
फिर भी हम इस सच को भूळ, चाळॆ ळूट्ने सबका, सब-कुछ.
हमे पता हेअ,खाली हाथ ही आये थे,और जाना होगा वएइसे ही.
फिर भी हम अनजान बन रहे, रात घेइरी, ज्यो आखे बन्द.

यही पहेली उलझन मेरी, ज्यो ज्यो सोचू उलझता जाउ.
रिश्ते-नाते अपनी जगह हेअ, सभी सही या सही नही.
इसका निर्ण्य समय ही करता, जिसका कोई तोड नही.
तब तो दुवईधा दूर हुई अब, आदि-शक्तई, शत-शत, प्रणाम.

जो भी हिस्से मे आया हेअ, सुख या दुख स्वीकार हमे.
नियति ने जिस हाल मे ढाला, खुशी-खुशी दरकार हमे.
कोशिश होगी बुरा न सोचे, बुरा न कहे, बुरा न करे.
शायद थोडा कुछ कर पाये, कुछ नही से तो कुछ बेहतर हेअ.

_ ० _

Friday, July 3, 2009

B,DAY WISH.



एक जउलाइ १९८०

अतीत के झ्घरोखओ से, यादओ ने जब झान्का
चईत्र उभ्अर कर आये, तीन द्श्क पहले के कुछ
आज खुशी का दईन फिर आया, सपनो कअई सौगात लिये
सपने जो सच ही होन्गे, मा‘-पा का आशीरवाद लिये.

उन्तीस बरस पहले आज ही के दिन ,समय ने ली थी अन्ग‘ङाई
जोघपुर की शाम के अन्धेरे मे, आठ बज कर पएतालिस मीनट
पुलकीत हुआ मन, मम्मी - पापा का, छओटा सा घर - सन्सार
एअक नई खुश्बु, मह्का दिया जिसने, तन मन घर - आन्गन.
सजीव हो उठी अपनो की, नीरस, छॊटी सी दुनीया

जन्म - दिन की लाख बधाई, ढेर सारा प्यार
मम्मी कह्ती’ सोना- बेटा, अन्कल कह्ते शेर
पापा कह्ते सन्दीप-बेटा, ऊण्देल रहे सब प्यार - दुलार
निय्ति ने किया था वादा, कोशिश से सब सम्भव होगा
धन्य आज हेइन मम्मी-पापा, ईशवर का आभार.
बनी रहे यह जोडी(भाई) यउ ही, नत - मस्तक हम पर्भु के द्वार.
ईशवर ने हमे दे दिया सब कुछ, सम्भाल,सन्जोना, जिम्मेदारी.
पर्भु-ईच्छआ ही सर्वओपरि हेइ, कोशिश अपनी, भआगीदारी.

माना लक्च बडा हे तुम्हारा, पूरा करना भी हेअ जरुरी
फिर भी वास्तिव्क्ता जीवन की, मुह- मोड्ना भी गैर जरुरी
माना ,आजआदी मन-की, इन्सान का बुन्यादी - हक हेअ
लेअकिन दुरुप्योग न हो इसका, यह भी तो जिम्मेदारी हेअ
मेरा वादा हेअ, तुम से यह, राह का रोडा नही बनेगे.
जो भी हेअ, जैसे भी हेअ, हम, मिल-जुल कर राह बनायेगे.

हम तो चाहेन्गे निश्च्य ही, मन-पसन्द जीवन-साथी, चुन
मम्मी-पापा का सूनापन, अपना-अधूरापन पूर्ण करो.
अन्तिम - फऐस्ला, विवेक तुम्हारा, वही करो जो जन्चे सही.
बेह्तर हो यदि, सब हो शामिल, मा की ममता रही पुकार.
घडी आ गयी हेअ फैसले की, करता नही समय इन्तजार.

एअक बार फिर ईश्वर से हेअ , यही प्रार्थ्ना
फूळॊ - फ्ळॊ, सुखी - जीवन मेअ, हन्स्ते-हन्स्ते गुजरे.
भावुकता मेअ आन्खे गीली ,पर मन मेअ विश्वास भरा.
सपने सचमुच ही सच होन्गे, समय लिये आकार चला
जश्न मनायेगे सब मिलकर, ईशवर का आभआर भला.

सन्दीप की याद-दीपक के साथ
पापा.

Thursday, April 2, 2009

UJALA

Aaj ujala sehma sehma.
Mano Suryagrahan ho gehma.
Gundagardi, aur makkari.
Sare - aam, sab per hean bhari.
Chor, lutere nider ghumtea
Mano phirean ughai kertea
Janta trahi - trahi ker rahi.
Sashan - pulis, aankhean mund rahi.
Balatkar, aapharan ho rahea.
Chaltea - phirtea sadkon per.
Nyay ki kya aas karean?
Jab pulis he mangea suchna per.
Mehangai ka aalam yeh.
Jab, garib, besahara, vidhva Maa.
Majbur, dudhmuhi bachhi ko.
Beach rahi, kodion ke dam.
Dusrea bachhon ki jan bachane.
Bharat Ma hea tughea salam.
Sesh bacha kya? garib kea pas.
Sukhi kaya, saval puchti nigahea.
Chithdon se aadhea- dhakea bachhea.
Ukhadti sansean dhotea bujurg.
Bharat ka bhavishya aankhon mea.
Hajar sapne liyea Slamdog.......... .
... O ...

Wednesday, February 4, 2009

AA GAYA BASANT.


Lo, ab aa gaya Basant.
Riston ki mithas, liyea
bhool ker , gilea shikvea
Mausam ne le Angdai
jevan ko Jevan denea,
Lo ab aa gaya Basant.

Kaliyon ke pelea se mukh per
bikher ta Basanti - aabha
mahki, kaliyan, chehki Chedian.
Bhoron ka leaker Prem- sandesh,
Lo ab aa gaya Basant.

Pashu - pakshi sab lagea jhumnea,
Mitti ke sondhi mahak, sungh.
Dharti ne kiya shrangar, pehan peet paridhan.
Kan - kan mea jeevan ko jeenea
Lo ab aa gaya Basant.

Madhos hava ke jhonkon ne
Phulon, kalion mea rang bharea
Nai aas jagi, nai subheh huie
jab konpal, kalian muskai
keh uthea sabhee
Lo ab aa gaya Basant.

---o---

Monday, February 2, 2009

BASANT KI BAYAR


Sardi se thithre paudhon par
Murjhaye kaliyon ke kan mea
Dea gayee, Bhoron ka sandesh, Basant ki bayar.

Muddat kea bad rosni bhar gaye
Thandi band kothri mea, jab
Mehka gaye, Basant ki bayar.

Chehchahane lagi, Chidian bhe
Jhurmut, Ghoslon se nikel bahar
Basanti hava ne jo keha Ped se.

Sun liya dherea sea, Chideon ne
Phir kya , bat pheal gaye
Ped, Pahad,Nadi, Jangal mea chah gaye, Basant ki bayar.

Padhate hua bachhon ke kan mea
Kuchkeh gaye Ma, Sarasvati
Aur bhe talleen mun se lagea padhne.

Shayad safalta ka mul - mantra tha,
Ya, Ma ka, pyar bhara Aashirvad
Jo bhe ho, jan gayea, Aaye Basant ki bayar.
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