Saturday, July 25, 2009

jeevan bhag - 3

जीवन : भाग - ३


जीवन एक सन्ग्राम, द्वन्द अच्छआई - बुराई.
तय करना होगा हमको, किस ओर हऐ जाई.
द्वन्द - युद्ध यह भारी पड्ता, कभी-कभी सम्बन्धो पर.
धीरज से करे सच का सामना, जीवन के दोराहे पर.
अर्जुन को उपदेश कर्शण का, गीता के अध्याय बने.
शत-पर्तीशत, हम सब पर लागू, आत्मशक्ती ही केन्द्र बने.
कुछ तो लोग कहेगे, लेकिन हम पथ-विचलित ना होगे.
जब भी मोअका आये ऐसा, मन-दिग्दर्शक हम होन्गे.

जब-जब जीवन को जीने मे, मन की शान्ति भन्ग हुई.
समझो गलती हुई कही पर, सजग चेतना हएइ सोई.
मन-विश्लेशण, निश्पछः भाव से, ऐसा क्या हमने हेअ किया.
कारण ढूढ उपाय करे, यदि बचना, जीवन - नर्क जिया.
यू तो गलती सब ही करते, कभी-कभी अनजाने मे.
जीवन - धर्म कहता स्वीकारे, बाकी व्यर्थ गन्वाने मे.
दर्ढ-निश्चय से वादा कर लो, गलती नही दोहरायेगे.
जीवन फिर से मुस्कायेगा, खुशहाली हम लायेन्गे.

जीवन का सन्ग्राम जटिल हेअ, जब-जब मोह-माया मे फन्से.
मानवता की कडी परीछा, दोअलत-लालच, मन मे बन्से.
जीवन-जन्ग जीतने को, कर्तव्य-बोध ले साथ चले.
अपना धर्म निभाना होगा, चाहे जो हालात बने.
जब-जब दुविधा हो मन मे, घिरे हुऐ अपनो के बीच.
देश-धर्म सबसे ऊपर हेअ, पूज्य मही-मन्डल के बीच.
अपना सब-कुछ देकर भी, यदि देश-धर्म को बचा लिया.
समझो सऔदा सस्ता ही है, सब धर्मो का मान किया.

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Thursday, July 23, 2009

जीवन : भाग - २


यह जीवन है, इस जीवन का, यही है रन्ग - रुप.
यह न सोचो, इसमै अपनी हार है या जीत है.
जीवन उसी का जइसने, समझी यह रीत है.
हमै मेइला क्या ?क्यो यह हो गया ? यह ही तो जीवन है.
यह जेइद छोडॊ, मुन्ह न मोडो, जीवन एक दर्शन है.
यह जीवन है .............

अक्सर ही शेइकायत होती, हमे है मिला क्या ?
क्या कभी है सोचा हमने ? जीवन को देइया क्या ?
भेद ये जाना, तो मुश्किल सब जीवन की आसान बने
सुख - दुख आती जाती छाया, जीवन का दर्पण है
यह जीवन है ............

जीवन है जीने की कला, जो कम लोगो को ही आये
हम मे से है सफल वही, जो भान्प समय को पहचाने
ठीक समय पर, सही ले नेइर्णय, और उसे सम्पउर्ण करे
समय-रेत पर, नेइशान पान्व के, जीवन को अर्पण है
यह जीवन है..............

जब - जब दुविधा छाये मन मे, जीवन एक सन्ग्राम बने.
जीत उसी की नेइश्चित है, जो सन्यम, विवेक से कर्म करे.
सबसे ऊपर देश-धर्म है, फिर अपनो की बारी है.
कुछ कर दे औरो के लिये भी, तभी. धन्य वह छ्ण है.
यह जीवन है...............

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Wednesday, July 22, 2009

जीवन - भाग १


यह जीवन हेअ. जीवन क्या हेअ ?
आये कहाँ से हम ? जाना कहाँ हेअ ?
इस जीवन का रह्स्य हेअ क्या ? समझा ना कोई.
भट्कन ये ऐसी, जैसे अन्धा कुआ या खाई.

यह सच हेअ, अल्ला, ईश्वर, गा‘ड, दे ना दिखाई.
लेकिन यह भी उतना ही सच, देख रहा वह सब.
हम क्या करते ? केअसे जीते हेअ,जीवन - अभिनव.
उसका दिया हुआ ही सब-कुछ, लुटा रहे या गवा रहे हम.

हमे पता नही, कब तक हेअ हम ? जाना होगा, यह निश्चित हेअ.
फिर भी हम इस सच को भूळ, चाळॆ ळूट्ने सबका, सब-कुछ.
हमे पता हेअ,खाली हाथ ही आये थे,और जाना होगा वएइसे ही.
फिर भी हम अनजान बन रहे, रात घेइरी, ज्यो आखे बन्द.

यही पहेली उलझन मेरी, ज्यो ज्यो सोचू उलझता जाउ.
रिश्ते-नाते अपनी जगह हेअ, सभी सही या सही नही.
इसका निर्ण्य समय ही करता, जिसका कोई तोड नही.
तब तो दुवईधा दूर हुई अब, आदि-शक्तई, शत-शत, प्रणाम.

जो भी हिस्से मे आया हेअ, सुख या दुख स्वीकार हमे.
नियति ने जिस हाल मे ढाला, खुशी-खुशी दरकार हमे.
कोशिश होगी बुरा न सोचे, बुरा न कहे, बुरा न करे.
शायद थोडा कुछ कर पाये, कुछ नही से तो कुछ बेहतर हेअ.

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Friday, July 3, 2009

B,DAY WISH.



एक जउलाइ १९८०

अतीत के झ्घरोखओ से, यादओ ने जब झान्का
चईत्र उभ्अर कर आये, तीन द्श्क पहले के कुछ
आज खुशी का दईन फिर आया, सपनो कअई सौगात लिये
सपने जो सच ही होन्गे, मा‘-पा का आशीरवाद लिये.

उन्तीस बरस पहले आज ही के दिन ,समय ने ली थी अन्ग‘ङाई
जोघपुर की शाम के अन्धेरे मे, आठ बज कर पएतालिस मीनट
पुलकीत हुआ मन, मम्मी - पापा का, छओटा सा घर - सन्सार
एअक नई खुश्बु, मह्का दिया जिसने, तन मन घर - आन्गन.
सजीव हो उठी अपनो की, नीरस, छॊटी सी दुनीया

जन्म - दिन की लाख बधाई, ढेर सारा प्यार
मम्मी कह्ती’ सोना- बेटा, अन्कल कह्ते शेर
पापा कह्ते सन्दीप-बेटा, ऊण्देल रहे सब प्यार - दुलार
निय्ति ने किया था वादा, कोशिश से सब सम्भव होगा
धन्य आज हेइन मम्मी-पापा, ईशवर का आभार.
बनी रहे यह जोडी(भाई) यउ ही, नत - मस्तक हम पर्भु के द्वार.
ईशवर ने हमे दे दिया सब कुछ, सम्भाल,सन्जोना, जिम्मेदारी.
पर्भु-ईच्छआ ही सर्वओपरि हेइ, कोशिश अपनी, भआगीदारी.

माना लक्च बडा हे तुम्हारा, पूरा करना भी हेअ जरुरी
फिर भी वास्तिव्क्ता जीवन की, मुह- मोड्ना भी गैर जरुरी
माना ,आजआदी मन-की, इन्सान का बुन्यादी - हक हेअ
लेअकिन दुरुप्योग न हो इसका, यह भी तो जिम्मेदारी हेअ
मेरा वादा हेअ, तुम से यह, राह का रोडा नही बनेगे.
जो भी हेअ, जैसे भी हेअ, हम, मिल-जुल कर राह बनायेगे.

हम तो चाहेन्गे निश्च्य ही, मन-पसन्द जीवन-साथी, चुन
मम्मी-पापा का सूनापन, अपना-अधूरापन पूर्ण करो.
अन्तिम - फऐस्ला, विवेक तुम्हारा, वही करो जो जन्चे सही.
बेह्तर हो यदि, सब हो शामिल, मा की ममता रही पुकार.
घडी आ गयी हेअ फैसले की, करता नही समय इन्तजार.

एअक बार फिर ईश्वर से हेअ , यही प्रार्थ्ना
फूळॊ - फ्ळॊ, सुखी - जीवन मेअ, हन्स्ते-हन्स्ते गुजरे.
भावुकता मेअ आन्खे गीली ,पर मन मेअ विश्वास भरा.
सपने सचमुच ही सच होन्गे, समय लिये आकार चला
जश्न मनायेगे सब मिलकर, ईशवर का आभआर भला.

सन्दीप की याद-दीपक के साथ
पापा.