Wednesday, September 30, 2009

ravan kabhee nahi marta.

रावण कभी नहीं मरता.


हर साल, दशहरे के दिन,
सैकडों गांव, शहर, मौहल्लों में,
हजारों रावण जलाये जाते हैं.
लेकिन रावण कभी नहीं मरता.
यदि रावण सचमुच मर जाये,
तो दशहरे का यह त्यौहार,
नीरस और फीका पड जाये.
महीनों,हप्तों की, वह तैयारियां,
रामलीला के विभिन्न पात्रों,
का चयन, मेकअप, और जोश.
रावण-परिवार के पुतलों का,
कारोबार चौपट हो जाये.
या दूसरे शब्दों में, यूं कहें,
मर्यादा-पुरुषोत्तम, ष्री राम,
का सम्पूर्ण अस्तित्व,
ही खतरे में पड जाये.

हमारे हिन्दु समाज में,
ष्री राम को भगवान का दर्जा
मिला. और कायम है.
क्योंकि उन्होंने रावण,
जैसे शक्तिशाली दैत्य,
अत्याचारी,व्याभीचारी और अहंकारी,
शासक से जनता को,
हमेशा के लिये मुक्ति दिलाई.
और राम-राज्य स्थापित किया.
तभी से रावण और उसका परिवार,
बन गया प्रतीक, बुराई का.
वर्षों से मना रहे हैं दशहरा.
बुराई पर अच्छाई की जीत.
विजयादशमी के दिन, सांझ को,
रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ,
के पुतले जलाये जाते हैं.
पर रावण कभी नही मरता.

रावण का न मरना, असल में,
हमारे मन की कमजोरी है.
राम और रावण तो हम सब के,
मन के अन्दर के भाव हैं.
आज परिस्थितियां बदल गयी हैं.
रावण राम पर भारी पड रहा है.
क्योंकि, हमने ही मौका दिया है.
हम निश्चय ही उत्तरदायी हैं.
आज के राम की,
इस दयनीय स्थिति के लिये.
जब तक हम अपने अन्दर,
का रावण जिन्दा रखेंगे,
अपहरण, हत्या, बलात्कार होते रहेंगे.
पुतले भी, हर साल जलते रहेंगे.
सालों साल, पुतला फिर है बनता.
क्योंकि रावण कभी नही मरता.

--- ० ---

Tuesday, September 29, 2009

brahmand me kya hum aekele ?

ब्रह्मांड में क्या हम अकेले ?


जुलाई १९६९, अमेरिका के, नील आर्मस्ट्रांग.
और एल्डिरिन बने, इतिहास - पुरुष.
मानव का चन्द्रमा पर, पहला कदम.
बन गया खोज, खोजने का हर्ष.
चालीस साल लग गये, चांद पर.
पानी की खोज, बनेगी सूत्रधार.
भविष्य में, मानव की अंत्रिक्ष-यात्रायें,
संचालन होगा, निर्भर चांद पर.

अभी अनुमान लगाना, नामुमकिन.
हमसे भी अधिक विकसित शायद,
सभ्यतायें, किन्हीं ग्रहों पर,
हैं भी या नहीं, कहना मुश्किल.
कभी-कभी कुछ घटनायें, अजीब,
जगाती कौतूहल, नव-नौन.
न जाने, नक्षत्रों से कौन ?
है देता, हमें निमन्त्रण मौन.

वैग्य़ानिक कुर्ज्वेल की आशा.
नैनो-टैक्नोलोजी, करे दूर निराशा.
मानव सक्षम हो जायेगा.
उमर का बढना, रुक जायेगा.
अमरत्व की ओर बढा कदम,
हजारों वर्ष की आयु, लायेगा.
तब शायद, कुछ जानें सही,
हम मानव अकेले, या नहीं ?

---०---

Friday, September 25, 2009

chalo chand par.

चलो, चांद पर.

दुनिया के अन्त्रिक्ष-इतिहास मे,
भारत का पहला-कदम.
बन गया मील का पत्थर,
वैग्यानिकों का सफल दम-खम.
भारत के अन्त्रिक्ष-वैग्यानिकों के,
बुलन्द हौसलौं का प्रतीक.
चन्द्रयान-एक,बाइस अक्तूबर २००८,
प्रक्षेपण, एक दम सटीक.

भारत का अन्तरिक्ष में बढा कदम,
साबित हुआ लम्बी छ्लांग,
चन्द्रयान का अन्तरिक्ष में, तीन सौ,
बारह दिन का छोटा सांग.
याद रहेगा, चन्द्र्मा की कक्षा के,
३४०० से भी अधिक चक्कर.
कर गये अपना काम, सौ प्रतिशत,
से भी ज्यादा, बढ कर.

हम दुखी थे जरुर, चन्द्रयान-एक,
के असामयिक अन्त पर.
पर रणभूमि में, वीर योद्धा की तरह,
कर चुका था काम, समय पर.
दर्ज कर गया चांद पर पानी,
के सबूत, मिटने से पहले.
धन्य हो गयी भारत-मां, जांबाज,
सपूतों के काम से, कह ले.

पहले भी हमने,’शून्य; रचा,
दुनिया को गिनती सिखलाई,
अब चन्दा पर पानी है,
देख, है दुनिया ललचाई.
एक आस जगी, सपना देखा,
चांद पे बस्ती बसायेंगे.
शुरुवात हो गयी पानी से,
चलो चांद पर, छुट्टियां मनायेंगे.

---०---

Tuesday, September 15, 2009

Birthday-Wish.

सोलह सितम्बर - २००९


सोलह-सितम्बर का दिन फिर आया,
ढेरो खुशिया, साथ लिये.
जन्म - दिन की लाख बधाई,
मम्मी - पापा का स्नेह लिये.
यह दिन, जब-जब भी आये,
ताजा फिर यादे हो जाये.
मा का "दीपू" प्यारा बेटा,
"दीपक" का बचपन, लौटाये.

जोधपुर मे, वह शुभ-घडी,
शुभ-मुहुर्त मे दिन की शुरुवात.
बारह बज कर चार मिनट,
बने गवाह, सौभाग्य की रात.
पन्ख लगा उड चला समय,
जीवन - चक्र गति पाई.
आयु के हर मोड पर तुमने,
मन चाही सफलता लाई.

धन्य वह घडी, हमने जब, प्रभु से,
पुत्र - रत्न धन पाया.
शीश-नमन सौ-बार,और आभार,
प्रभु ने जो यह दिन दिखलाया.
अब है यह सौभाग्य हमारा,
आगे बढ, स्वीकार करे.
प्रभु-इच्छा ही सर्वोपरि है,
जिम्मेदारी वहन करे.

मन मे है, विश्वास लबालब,
हर कठिनाई होगी दूर.
मन चाहा, जीवन-साथी चुन,
जीवन-पथ, खुशिया भरपूर.
मा - पा का आशीर्वाद तुम्हे,
अब देर नही कुछ समय बचा,
सब मिल-जुल कर खुशिया बान्टे,
सपना हो साकार, रचा.

एक बार फिर हमे भरोसा,
ईश्वर राह दिखायेगा.
अपनी भी कोशिश है पूरी,
मन - वान्छित फल आयेगा.
लम्बी-उमर, सफल-जीवन हो,
दामन खुशियो से भर जाये,
बार-बार, दिन यू ही आये,
फूल खिले, चेहरे मुस्काये.

समाप्त.

Sunday, September 13, 2009

हिन्दी - दिवस


आज चौदह सितम्बर, हिन्दी-दिवस है.
शुक्र है अखबार,टी-वी का, आज हिन्दी-दिवस है.
कहने को तो हमारी राष्टर-भाषा हिन्दी है.
लेकिन सरकारी काम-काज,
ज्यादातर अन्ग्रेजी मे ही होता है.
क्षमा करना, इसका अर्थ यह नही,
कि, हिन्दी हमे प्रिय नही,
या हिन्दी मे, राज-भाषा बनने के गुण नही.
असल मे यहा, मामला ही कुछ और है.
हम भारतवासी, अपनी मानसिकता बदल नही पाये है.
आजादी के बासठ वर्ष बाद भी, गुलामी भूल नही पाये है.
शीर्षस्थ पदो पर उदासीनता, और अन्ग्रेजी-प्रेम भी कारण है.
और, जन-मानस मे फैली सामन्ती-सोच,
कि, हिन्दी-ग्य़ान से कुशल-नेत्रत्व सम्भव नही.

हिन्दी का विकास कैसे हो ?
जब हम स्वयम ही,अपने पैरो पर कुल्हाडी मार रहे है.
हिन्दी-पखवाडा मनाने के लिये,
सरकारी-आदेश भी, अन्ग्रेजी मे छ्प रहे है.
लोकसभा और राज्य-सभा मे, नेताओ को,
हिन्दी समझ नही आती या समझना नही चाहते.
इसलिये, अन्ग्रेजी - रुपान्तर जरूरी है.
कभी-कभी नेताओ का, हिन्दी-भाषण भी मजबूरी है.
क्योकि, हिन्दी-भाषी क्षेत्रो के, वोट बटोरना जरुरी है.
फिर भी अन्ग्रेजी अनुवाद के बिना, बात अधूरी है.
काश ! आजादी के बासठ वर्ष बाद,
कम से कम हम इतना समझ पाते,
दूसरो का भी आदर करेन्गे हम.
लेकिन अपनी मा का सम्मान जरुरी है.
हा, अपनी राष्ट्र-भाषा का ग्य़ान जरुरी है.

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Tuesday, September 8, 2009

जीवन : भाग-५
सफ़र.


जीवन का सफ़र, कुछ जाना भी,
लेकिन फिर भी अनजाना है.
कब शुरु हुआ, यह तो है पता.
पर खत्म कहा, नही जाना है.
सामान बान्ध लिया, लम्बा सफ़र,
लेकिन पल की भी खबर नही.
पल-पल को जीना ही बेहतर,
जो मिला उसे खोना भी नही.

जीवन-चक्र नही रुकता है,
इसीलिए चलना होगा.
फूल खिले या कान्टे डग मे,
चलते ही जाना होगा.
चलने का नाम ही जीवन है,
रुक गये तो समझो, सान्स रुकी.
हो सफ़र सुहाना, यत्न करो,
अन्त-घडी, रोके न रुकी.

यह सफ़र बडा ही रोचक है,
चलते है सभी, पर पता नही.
कुछ मिले, बीच मे छूट गये,
होन्गे ये विदा, था ग्य़ात नही.
कभी-कभी लगता है यह,
हम खुशकिश्मत, जो सन्ग मिला.
दूजे पल ही सब छूट गया,
सोचा जो नही, वह दुख मिला.

जीवन के सफर मे, जो भी मिले.
आखिर तो बिछुड ही जाते है.
सिलसिला, यू ही चलता रहता,
हम स्वम कहा रुक पाते है ?
कभी खुशी मिली, तो गम भी है,
दोनो ही जरुरी, जीवन मे.
सुख-दुख की आन्ख-मिचौनी से,
बढता जीवन, घर-आन्गन मे.

जीवन का सफर, हो सुहाना-सफर,
कोशिश हो, हन्से जग सारा.
जब-जब दुख की बदली छाये,
हो चारो तरफ अन्धेरा.
आशा-दीप जला, मन मे,
धर धीरज, कर्म - बसेरा.
जीवन फिर से, मुसकायेगा,
खुशिया बने सवेरा.

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Saturday, September 5, 2009


जीवन : भाग - ४
सन्घर्ष.

जीवन का सन्घर्ष बना, जीवन-विकास का कारण.
लाखो-करोडो वर्षो के सन्घर्ष, बने जीवन-रण.
जब जब कुछ पाया मानव ने,वर्षो का सन्घर्ष फला.
आवश्यकता, आविष्कार की जननी, मन्त्र चला.
सन्घर्ष-चक्र चलता ही रहा, जीवन विकास-गति पाई.
पीछे मुड कर देखा ही नही, मानव-सभ्यता मुस्काई.
सन्घर्ष का इतिहास, बहुत-कुछ सिखा रहा पीढी को.
अब यह हम पर निर्भर है,कुछ जोड बढाये सीढी को.

जीवन के सन्घर्ष आज, चहु -ओर मचा कोलाहल.
दो वर्गो मे बन्टा समाज, सन्घर्ष बना जीवन-हल.
एक के पास तो सब कुछ है, पर पाना चाहे और.
दूजे के पास तो कुछ भी नही,खाना,कपडा,न कही ठौर.
गरीब का सन्घर्ष तो रोज की रोटी, जीना ही मुश्किल है.
कभी-कभी तो वह भी नही, बस सन्घर्ष ही जीवन है.
यक्छ-प्रश्न अब उठता है, क्या यह झगडा नाहक है ?
मानव मानव सभी बराबर, सबका, सब पर हक है.

जीवन की मुस्कान के पीछे, वर्षो का सन्घर्ष लिखा.
कर्म-यग्य से जीवन के सुन्दर सपनो का स्वर्ग दिखा.
जीवन सफल हुआ उसका ,जो कर्म-लक्छ्य़-सन्घर्ष किया.
बिना लक्छ्य, सन्घर्ष बिना, जीवन समझो सपना ही जिया.
भाग्यवाद है अकर्मण्यता, जीवन की असफलता.
बिना कर्म के, भाग्य-भरोसे, जीते जी ही मरता.
इसी लिए तो प्रथ्वी मान्गे, श्रम-जल सीचा उपवन.
तभी फसल लहलहाये खेत मे, पुलकित हो मन भावन.

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Tuesday, September 1, 2009

भ्रम


कभी-कभी मुझे भ्रम हो जाता.
लाख सोच पर समझ न पाता.
अपना देश पराया लगता.
जीवन सपने जैसा लगता.
धरा वही, आकाश वही है.
फिर इन्सा क्यो बदल गया है ?
मानव दानव के चोले मे.
भेष बदल, अपने टोले मे.
अपनो का ही खून पी रहा.
खुद ही आग लगा कर घर को, शोर मचा रहा.

डाक्टर को भगवान मानते.
आज भी इस देश मे.
सफेद कोट के, काले कारनामे.
अपने भारत - देश मे.
नकली डाक्टर, नकली खून.
जानवरो का खून, इन्सानो के लिये.
अन्ग निकाले, इलाज के बहाने.
मौत बान्ट्ते, धन का जुनून.
और भी बहुत कुछ गड्बड - झाला.
पेशे को बदनाम ‘कुछ‘ ने कर डाला.

डा० सर्वपल्ली राधाक्र्श्न्णन और,
बाणभट्ट् के भारत देश मे.
आज डिग्रिया बिक रही सरे-आम.
पद और पैसे के प्रलोभन मे.
शिक्छा हुई, गरीब से दूर.
या गरीब की पहुच शिक्छा से दूर.
भ्रष्टाचार का बोलबाला है.
वी० सी० मन्त्री जी का साला है.
नई पर्तिभा का उदय कैसे हो ?
पूरी की पूरी पर्किर्या मे घोटाला है.

आधुनिकता की भेट चढ रहे.
खून के रिश्ते खून मे डूब रहे.
मा-बाप, भाई-बहन, बेटा-बेटी.
कोई नही पीछे, रिश्तो की डोर टूटी.
निरीह, बेसहारा, बच्चो का क्या होगा ?
पति-पत्नि के टूट्ते रिश्ते, आत्महत्या,
तलाक और आधुनिकता की अन्धी दौड.
क्या वास्तव मे जीवन-पर्गति-सूर्य उगेगा ?
आशा है हम सुधरेगे, जीवन सन्वरेगा.
मेरे इस भ्रम की धुन्ध धुलेगी,सवेरा होगा.