Thursday, September 15, 2011

सोलह सितम्बर - 2011

सोलह -सितम्बर, २०११


सोलह - सितम्बर दिन फिर आया,
खुशियों की, बरसात लिये.
बरसों - बरस, दिन यूं ही आये,
सपनों का आकार लिये.

जन्मदिन की लाख बधाई,
सागर की गहराई में,
विजयी बनो, खुश, दीपक बेटे,
जीवन - संघर्ष लडाई में.

सौ-सौ बार नमन ईश्वर का,
जो यह दिन दिखलाया है.
आधी-रात, जब हुआ सवेरा,
मन-अंधियारा, भगाया है.

बारह बज कर, चार मिनट पर,
खुशी की वो घडी आई.
आलोकित, पुलकित तन-मन सब,
खुशबू महकी, बन परछाई.

वैसे तो हर साल जन्मदिन,
ढेरों खुशियां लाया है.
लेकिन अबकी बार खास है,
नई आस बन आया है.

मां - पा का आशिर्वाद हमेशा,
हर हाल, तुम्हारे साथ है.
जीवन-पथ पर बढे चलो,
डाल हाथ में हाथ है.
---०---

सोलह सितम्बर - 2011

Saturday, August 27, 2011

कहाँ है मेरा भारत ?

कहां है मेरा भारत ?

मैं सपने की बात नहीं कर रहा.
सच मैं ढूंढ रहा हूं.
आज एक यक्ष प्रश्न उभर कर,
स्वंम मुझसे पूछ रहा है,
कहां है मेरा भारत ?
अभी कुछ दशकों पहले,
हमें जो पढाया, पढा,
सीखा और सिखाया,
अब कहीं दिखाई नहीं दे रहा.
मुझे याद है अभी भी,
गांव की वह छोटी पाठशाला,
पंद्रह-अगस्त/छ्ब्बीस जनवरी,
की सुभह-सवेरे, प्रभात-फेरी.
छोटे-छोटे हाथों में,
कागज का छोटा सा तिरंगा,
जुबान पर भारत माता की जय,
वन्दे मातरम - वन्दे मातरम.
और जोश से बढते कदम.
अब सपनों की बात है.
अब तो सोचना पडता है-
भारत माता की जय बोलूं,
तिरंगा हाथ में लहराऊं,
या पुलिस के डंडे खाऊं
क्या यही है, मेरा भारत ?
नहीं, कदापि नहीं, हरगिज नहीं.
हमें पढाया, भारतीय- संविधान,
लोकतंत्र की रीढ है.
और संसद-भवन,
लोकतन्त्र का पावन मन्दिर.
फिर संविधान की उपेक्षा क्यों ?
वह भी वे लोग, जिन पर,
संविधान की रक्षा की जिम्मेदारी है.
आज जनता का धन,
हडप या हडपने की कोशिश,
में कुछ लोग,
मन्दिर में घुस आये हैं.
कोई शोर मचाये, तो कहते हैं-
तुम्हें बोलने का अधिकार नहीं.
मन्दिर प्रशासन भी चुप है.
तो क्या हम मानें -
चोर -चोर मौसेरे भाई.
मुंह की खाई, लाज न आई,
ऊपर से अब धौंस जमाई.
हम समर्थ, हम चुन कर आये.
मनमानी का लाइसेंस लाये.
तुम्हीं बताओ, कहां मैं जाऊं.
मेरा भारत कहां मैं पाऊं ?
--- ० ---

Thursday, June 30, 2011

जन्मदिन और आशा.

जन्म- दिन और आशा

एक जुलाई याद दिलाऐ,
बीते ढेरों स्वरणिम पल.
जन्म दिन की लाख बधाई,
सोनू , सोना , क्षण, हर पल.
दूर भले ही हो, पर लगता,
जैसे हम सब कल ही मिले,
पापा जी, मम्मी जी कहते,
छुए पैर और मिले गले.
हम न सही, आशिर्वाद हमारा,
सदा तुम्हारे साथ है.
रहो कहीं भी, कवच तुम्हारा,
रक्षक ईश्वर-हाथ है.
प्रतीक्षा की घडियां लम्बी,
आंखें भी कुछ थकी-थकी.
आशा पलकों में है सोई,
और मन में रची-बसी.
बरसों पहले के वे सपने,
शायद अब रंग लायेंगे.
चुपके-चुपके उतर धरा पर,
पीछे से, चौंकायेंगे.
बीत रही है, रात ये पल-पल,
उजियारा होने को है.
जिस क्षण का इन्तजार हमें,
लगता, वह आने को है.
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Saturday, March 26, 2011

हार नहीं मानूंगा

मैंने निश्चय किया है,
अब मैं, हार नहीं मानूंगा.
उम्मीदों का छ्प्पर टूटा,
अपनों का भी साथ है छूटा.
तूफानों का दौर है जारी,
कोशिश, फिरती मारी-मारी.
घुप्प अंधेरा, पथ अनजान,
समझ न आये, हे भगवान.
तभी कहीं से, जुगनु आया,
बोला डरो न, दीपक लाया.
जुगनु ने जो राह दिखाई,
व्यर्थ नहीं जाने दूंगा.
मैंने निश्चय किया है,
अब मैं, हार नहीं मानूंगा.

असफल होकर, गिरा धडाम,
कुछ बोले, लो हो गया काम.
चिडिया के चीं चीं क्रंदन ने,
मन-उलझन को भंग किया.
तेज हवा के, इक झोंके ने,
नीड जमीं पर पटक दिया.
फिर हैरान, सुना चीं क्रीड,
लगी बनाने, फिर एक नीड.
ईश्वर-इच्छा, है नत-मस्तक,
रार नहीं ठानूंगा.
मैंने निश्चय किया है,
अब मैं हार नहीं मानूंगा.

घोर निराशा ने जब घेरा,
बीमारी ने डाला डेरा.
जीवन-चर्या भी अस्त-व्यस्त,
हुआ सुधार, कुछ-कुछ स्वस्थ.
अनमन मन से, बैठा एक दिन,
बाहरी दीवार पर, चींटियों की लाइन.
दाना लेकर, चींटियों की चढाई,
गिरतीं, उठतीं, चढती पाईं.
नन्हीं चींटियों की खामोश सीख,
कभी नहीं भूलूंगा.
मैंने निश्चय किया है,
अब मैं हार नहीं मानूंगा.
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