Saturday, March 26, 2011

हार नहीं मानूंगा

मैंने निश्चय किया है,
अब मैं, हार नहीं मानूंगा.
उम्मीदों का छ्प्पर टूटा,
अपनों का भी साथ है छूटा.
तूफानों का दौर है जारी,
कोशिश, फिरती मारी-मारी.
घुप्प अंधेरा, पथ अनजान,
समझ न आये, हे भगवान.
तभी कहीं से, जुगनु आया,
बोला डरो न, दीपक लाया.
जुगनु ने जो राह दिखाई,
व्यर्थ नहीं जाने दूंगा.
मैंने निश्चय किया है,
अब मैं, हार नहीं मानूंगा.

असफल होकर, गिरा धडाम,
कुछ बोले, लो हो गया काम.
चिडिया के चीं चीं क्रंदन ने,
मन-उलझन को भंग किया.
तेज हवा के, इक झोंके ने,
नीड जमीं पर पटक दिया.
फिर हैरान, सुना चीं क्रीड,
लगी बनाने, फिर एक नीड.
ईश्वर-इच्छा, है नत-मस्तक,
रार नहीं ठानूंगा.
मैंने निश्चय किया है,
अब मैं हार नहीं मानूंगा.

घोर निराशा ने जब घेरा,
बीमारी ने डाला डेरा.
जीवन-चर्या भी अस्त-व्यस्त,
हुआ सुधार, कुछ-कुछ स्वस्थ.
अनमन मन से, बैठा एक दिन,
बाहरी दीवार पर, चींटियों की लाइन.
दाना लेकर, चींटियों की चढाई,
गिरतीं, उठतीं, चढती पाईं.
नन्हीं चींटियों की खामोश सीख,
कभी नहीं भूलूंगा.
मैंने निश्चय किया है,
अब मैं हार नहीं मानूंगा.
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