Friday, July 31, 2015

 सपना चोरी हो गया.


( यह रचना, ३१ जुलाई २०१५ को लिखी गई. )

मुझे,  कल  ही  पता  चला,    मेरे  कुछ  सपने,  एक  चोरी  हो  गया.
जानकर,   लहूलुहान    हुआ   मन,     घाव   घहरा   बन   गया.
कहते  हैं,  समय  घाव  भर  देता  है,   शायद,  समय  बहुत  लगेगा.
बिखर  गया,  टूट  गया  मन  में,    फिर  से,  बनाना,  सजाना  पड़ेगा.

लोग  पूछते  हैं – तुम्हें, किस  पर  शक,   क्या,  बताऊँ – किसी  पर  नहीं.
सभी   अपने  हैं,   मेरे  अपने,     गैर,   तो   कोई,   है   ही   नहीं.
किसी  ने  कहा,   खुश – फहमी  में  हो,    अपने  ही,   छुरा  भोंकते  हैं.
मुझे,  सहसा  विश्वास   न  आया,    घटना   के  बाद  ही,   चौंकते  हैं.

इस   घटना   ने,   जैसे,   मुझे,    भीतर    तक,  झकझोर   दिया.
विश्वास  नहीं,  डेड  साल  पहले  का  सपना,    चोरी  हुआ  या  छुपा  दिया.
पीना   पड़ा,   जहर   भी,   यदि,     ख़ुशी – ख़ुशी   मैं,   पी   लूँगा.
जिनको,   मैंने    गोद   खिलाया,     आँच   नहीं,    आने   दूंगा.

हे  ईश्वर,   माफ   करो   उनको,     जिनसे,   अनजाने   भूल   हुई.
मैं,  भी   माटी  का   ही  पुतला,    कोशिश   कर  लूँगा,   एक  नई.
खोया  है  सपना,   हौसला  नहीं,    फिर  से,  बुन  लूँगा,  तिनका – तिनका.
चिड़िया  से,  मिली   सीख,     जगाऊंगा    विश्वास,  फिर  से,   मन  का.

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Sunday, July 26, 2015

धैर्य.


( यह रचना, २४ जुलाई २०१५ को लिखी गई. )

हम  दुखीं  हैं  इसीलिये,  क्योंकि,    कोई,  हमें  बरदाश्त  नहीं.
कुछ  भी,  यदि  मन  के  खिलाफ,    सुनने  को,  तैयार  नहीं.
फिर,  कैसे   बदलें  हालात ?     और  मुश्किलें   हों   आसान.
छोटी  सी  बात -  रख,  मुहँ  बन्द,     धैर्य  को,   दें   मान.

जिन्दगी  में,  ताल – मेल  की  कमी,    अक्सर,  हमें  खलती  है.
बिगड़  जाता  है,  काम, बनते – बनते,    बेवजह,  नफरत  पलती  है.
थोड़ी  सी,  समझ,  और  सहनशीलता,    बदल  सकती  है,  माहौल  को.
बस,  सुन  लें,   दूसरों  को  भी,     शान्त – मन,    सम्भावना   को.

सड़क  पर,   रोडरेज   की   घटना,      आम   हो   गई   है.
वाहन,  गलती  से,  छू  भी  दिया,    समझो,  आफत  आ  गई  है.
जानलेवा – क्रोध  और  यातायात  ठप्प,    शिष्टाचार  भी,  भूल  गये.
बस,   मैं   और   मेरा  रौब,     बाकी  -  सब,   .भाड   में,  गये.

शान्ति,  कैसे  रह  सकती  है ?    एक – दूसरे  को,  सहन  किये  बिना.
बात,   बन  सकती  है,  क्या ?    दूसरों  का  द्रष्टिकोण   समझे  बिना.
सहनशीलता    का   अर्थ,   कायरता,      या     कमजोरी    नहीं. 
चरित्र   की   महानता    है,   ये,      सही    रास्ता    है,   यही.


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Tuesday, July 21, 2015

गरीब – किसान.


( यह रचना, १५ जुलाई २०१५ को लिखी गई. )

गाँव  में,  गरीब  की  बेबसी,    बेमौसम – बारिश  की  मार.
एक – खेत   की   खेती,     पल   रहा,   पूरा   परिवार.
काले   पड़  चुके,   कुछ   दाने,    ही,   घर   तक  आये.
चारा  भी,  सैड  गया,  खेत  में,   भुखमरी  पशुओं  की,  लाये.

सरकारी – मद्द   की  उम्मीद,    उम्मीद  बन  कर,   रह  गई.
जमा – पूंजी    हुई   ख़त्म,      भैंस   भी,    बिक   गई.
घर  का,  छप्पर – पुराना,   टूट  गया,    सोचा   था,   बनाना.
गंगा – जमुना   बहेंगी,   घर  में,     चाहता  था,   सिर  छुपाना.

असाढ़  में,  फसल  की  तैयारी,    घर – में,  बीज  का  दाना  नहीं.
उधार,   ज्यों   का   त्यों,     पिछली    फसल   का   ही.
उजड़ा – उजड़ा  सा,  मंजर  है,    आँखों  में  भरा,  समन्दर  है.
हे  ईश्वर,   नैया   पार  करो,    पानी,   नैया  के,   अन्दर  है. 

बिटिया  आई,  और  लिपट  गई,    बोली,  बापू   न  हो  उदास.
एक  और  एक,  ग्यारह  बनते,   करने  की  हिम्मत,  अपने  पास.
जगी  चेतना,  फिर  से,  मुझ  में,    सुन,  प्यारी – बिटिया  के  बोल.
किस्मत  नहीं,  मेहनत  देगी  साथ,    बोल,  हैं  ये,  कितने  अनमोल.


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Friday, July 17, 2015

काम.


( यह रचना, ०९ जुलाई २०१५ को लिखी गई. )

प्रक्रति  हमें,  समझाती  पल – पल,    उठो,  चलो,  कुछ  काम  करो.
सूरज,   चाँद – सितारे,   कहते,    हम,   हैं  ना,   फिर,  काहे  डरो.
तोता – मैना   बातें  करते,    क्योँ,   मेहनत  से,   रहे   मुंह – मोड़.
घर – घर  गौरैया   कहती,  फिरती,    काम  करो,   आलस  दो  छोड़.

यह  जन्म  हमारा,  व्यर्थ  न  हो,    सोचो,  समझो  और  तय  कर  लो.
हम – सब  में,   ढेरों  है  शक्ति,     कुछ  काम  करो,   हिम्मत  कर  लो.
बहती – वायु,   झरने,   नदियाँ,      सदियों   से,    हैं,   समझाय    रहे.
चलना,  कुछ – करना,   जीवन  है,    जो  मिला  आज,  कल  रहे,  न  रहे.

कल  का  काम,   आज  करना  है,     और,   आज  का,   अभी  करो.
मिट्टी  का   सन्देश   यही,     जीना  है,   तो    काम   करो.
तभी,  न्याय   कर  पायेंगे  हम,     अपने   जीने  का,  अधिकार.
तन,  सुगठित,   मन  शान्त  रहेगा,    खुशहाली  की,   बहे  बयार.


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Wednesday, July 15, 2015

कहीं, देर ना हो जाये.


( यह रचना, २३ जून २०१५ को लिखी गई. )

सच,  बदल  नहीं  जाता,  अपनी  गलतियाँ,    दूसरों  पर,  मढ़कर.
हो  जाती  है,  देर,   जब  हो  सामना,     सच  से,   डर – कर.
कब  तक,  छुपायेंगे  मुहँ,  हकीकत  से,    सामने,  आना  ही  होगा.
गलतियों  का  बोझ,  दूसरों  के  कंधे  नहीं,    खुद,  उठाना  ही  होगा.

ऊपर – वाला  देता  है,  मौका  सभी  को,    प्रायश्चित  और  सुधरने  का.
कुछ  सुनते,   कुछ  करते   अनसुना,     मौका,   राह,   बदलने  का.
सोच – समझ  तय  करना,   ऐसा,  ना  हो,     कहीं,   देर  हो  जाये.
प्रायश्चित  का,   मौका  भी,   गवां  दें,     और,  द्रश्य,   बदल  जाये.

आधा – सच,   झूठ  से  भी,    ज्यादा  खतरनाक,    नुकसान  करता  है.
खुद,  तय  कर  लो,   सच  एक  बार,     झूठ,   सौ – बार  मरता  है.
कोई,  मुगालते  में  ना  रहे,  आज  जो,  बो – रहे,   कल,  हमें    है  काटना.
देर – सबेर,   भले   हो   जाये,   हमीं   को,     पड़ेगा,   हिसाब    देना.

बहुत,   गँवा   चुके,    पहले   ही,       आगे,   नहीं   गवायेंगे.  
अबकी   बार,   समय   से    वादा,     देरी    नहीं     लगायेंगे.
पिछली  बातें,   याद   न   आयें,     इतना,   बेहतर   करना   है.
और  नहीं,   अब,  जय  ही  होगी,     यही  सोच  कर,  चलना  है.


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Monday, July 13, 2015

अपना – अपना सच.


( यह रचना, २० जून२०१५ को लिखी गई. )
सब  हैं,   आदि – शक्ति  की  रचना,    लेकिन  सबका  अलग  वजूद.
कोई   दो  इन्सान,   विश्व  में.     नहीं   एक,   कहें   आँखें – मूंद.
सच  का   रूप,   कभी  ना   बदले,      प्रक्रति  है,   परिवर्तनशील.
यही,  वजह  बनती,  संशय  की,    होना  पड़े,  सच  को  ही,  जलील.

सबके,   अपने   अलग,   तर्क   हैं,     अलग   अलग     भगवान.
अपने   हित,   को   ऊपर    रखें,     फिर,   कैसे   लें,   जान ?
मन – माफिक   सच   को  तय   करते,     आफत,   लेते    मोल.
आखिर,   हो   जाते    बेनकाब,       जब   खुल    जाये    पोल.

सच  को,   सच,  ही   रहने   दें,    जाँच,   अपनी   शिक्षा – दीक्षा.
सत्यवादी  की,    जीवन – पथ   पर,     पग – पग   होगी,   परीक्षा.
सच,  एक  पूजा,   सच  है,  तपस्या,     महापुरुषों  का,  कहना  है.
तैयार  है,   जो  सब,   खोने  को,     उसने,   सच  को   जाना  है.

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मानव – धर्म.


( यह रचना, १६ जून, २०१५ को लिखी गई. )

जीवन में,  निश्चित,  कुछ  भी,  नहीं,    जो  सोचा,  वह  हुआ  नहीं.
पल – पल  बदले,  हालातों  में,     हो  रहा,  हुआ,  सोचा,  ही  नहीं.
ऐसा  भी  नहीं,  सब,  बुरा  हुआ,    कुछ  अच्छा  भी,  हिस्से  आया.
समझे  थे,  जो,   है  अभिशाप,     वरदान  वही,   बनकर  आया.

क्यों,  दोषारोपण  हो,  ओरों  पर,     हम,  भी  हैं,  बराबर – साझीदार.
शायद,  नौबत  यह  ना  आती,    होते,  यदि  सजग,  व  समझदार.
अब  पछताये,  कुछ  होय  नहीं,    जो  हुआ,  समय  वह,  बीत  गया.
कुछ  करें,  बनें,  खुद  के  प्रहरी,    बदलाव  जरुरी,   है,  समय  नया.

मानव – देह   यह,  मिली   हमें,     मानव – धर्म   निभाना  होगा.
अपने – लिये,  सभी  जीते  हैं,     ओरों  के  लिये   भी, जीना  होगा.
जो  भी  मिला,  है  सिर – माथे,    स्वीकार  करें,  सदुपयोग  करें.
बूंद – बूंद  से,   भरे   सरोवर,     सपने,    अपने   साकार  करें.

मानव – मानव  हैं,  सभी  बराबर,    ईश्वर  ने,  ना  भेद  किया.
हम,  क्यों  बंटे,  जाति – धर्मों  में,    कुछ  को,  पीछे  छोड़  दिया.
जीयो   और   जीने  दो,  सबको,    अपना,   योगदान   भी  हो.
पूरी – दुनिया,  घर  अपना  ही,    सबके – मालिक,   की  जय  हो.

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Thursday, July 9, 2015

होली. – २०१५


 ( यह रचना, ०१ मार्च २०१५ को लिखी गई. )

होली,  त्यौहार  है,  रंगों  का,    यह,  जीवन  का,  स्पन्दन  है.
ये, रंग भी,  कुछ – कुछ  कहते  हैं,    जीवन,  रंगों  का,  बन्धन  है.
कहने  को,  चुटकी – भर  रंग  है,    यह,  खुशियों  का,  आलिंगन  है.
होली   तो,   एक   बहाना  है,    जीवन,   सजना  है,   संवरना  है.
है  मौका,  भूल  न  जायें  हम,    जीवन,  उत्सव – संग,  चलना  है.

आओ,  रंग लें,  तन – मन,  संग – संग,    होली  के,  इन  सतरंगों  में.
भूलें,  जीवन  के,   कडवे – सच,     नई  राह  बने,   जीवन –बन  में.
जो,  गलत  हुआ,  अब,  ना  होवे,    बस,  खुश  हों,  जीवन – जीने  में.
जीवन,   नव – निर्मित,   करना  है,    इन,   रंगों   की   परछाई  में.
अबीर,  गुलाल   और   पिचकारी,    बदल  रहे   दुःख,   खुशियों   में.

होली  के,   चटकीले,   ये  रंग,     हर  रंग,   संदेशा  देता  है.
रंग  लो,  मन,  मनचाहे – रंग  में,    कल, क्या  हो,  किसने,  देखा  है.
अपनों   में,   अपनापन   ढूंढें,     जीवन – कर्तव्य    निभाना   है.
जो,  बीत  गया,   नहीं  आयेगा,    जो,  है,  उसमें  रम  जाना  है.
ये,  रंग,  बनें   जीवन  के  रंग,    जीवन,  खुशियों  से,   भरना  है.

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Wednesday, July 8, 2015

कल.


( यह रचना, २७ जनवरी २०१५ को लिखी गई. )

सपने,   सच  भी,  होते  हैं,    ये,  ख्याल  हमारा  है.
कल,  की  नींव,  आज  रख  दी  है,   कल,  हमारा  है.
कल,  को  देखा  नहीं,  मगर,   तस्वीर,  हमारे  मन  में,  है.
कसर,  नहीं  छोड़ेंगे,  तिल  भर,   पूरी,  कोशिश  मन  में  है.

तूफान,   तो  आते  ही  रहते  हैं,   हमें,   निबटना  आता  है.  
चाहे,  जो   हालात  बनें,     हमें,   मार्ग  बनाना,   आता  है.
सच,  जो  जाना,  सुना  है,  अब – तक,   उसे,  निभाने  की  बारी.
रिश्ते – नाते,   अपनी  जगह,  हैं,    नेक – नीयत,   मंजिल  म्हारी.

मानवता,  का  पाठ,  जो,  सीखा,    अब,  आई,   अपनी  बारी.
आँच  नहीं,   आने  देंगे,  हम,     न्यौछावर   दुनिया  सारी.
अच्छे – कर्मों   की  है,  कोशिश,     परिणामों,  से   बेपरवाह.
गीता – ज्ञान,  मार्ग  दर्शक  हो,    यही,  बने  जीने  की  राह.

आज,  यदि  हम,  अच्छा  करते,    कल,  को  बेहतर  होना  है.
कल,  की  बातें,   कल,  ही  होंगी,    वर्तमान   में,   जीना  है.
ईश्वर – आशीर्वाद,    साथ  है,    अच्छे   परिणामों   की  आस.
आखिर,  मंजिल   पा   ही  लेंगे,    मन  में  है,  पूरा – विश्वास.

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Monday, July 6, 2015

नव – बसंत, आयेगा.


( यह रचना, २१ दिसम्बर, २०१४ को लिखी गई. )

कहने  से,   ज्यादा  सुनना,    और,   सुनकर  सोच – विचार,  करो. 
शायद,   हमसे   भूल  हुई,      करो,  भूल – सुधार,   न  देर  करो.
बाधाओं,  से   डरना  नहीं,     और,   न  ही,   समय   गँवाना  है.  
राह,  कँटीली   हो  या,   सुगम,    हर  हाल,  में,   चलते  जाना  है.

दूर  करेंगे,   हम   न   डरेंगे,    बाधाएं,   जीवन – पथ   की.
नहीं,  रुकेंगे,  नहीं,  झुकेंगे,     बात,  आज  हो,  या,  कल  की.
आशाओं   में,   रंग   भरेंगे,      नव – बसन्त,   फिर   आयेगा.
नया   सवेरा,   आयेगा,        जीवन,    फिर  से,   मुस्कायेगा.


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Saturday, July 4, 2015

मौन.


( यह रचना, ११ दिसम्बर २०१४ को लिखी गई. )

जब,  कहने  का,  कुछ  असर  न  हो,     तो,  चुप  रहना,  ही  बेहतर  है.
वाचालों   को,   चुप   करना   है,   तो,     मौन – व्रत   सर्वोत्तम   है.
चुप,  बैठो,  और  इन्तजार  करो,    यदि,  समय  तुम्हारे,  साथ  न  हो.
अच्छे – दिन   काम   बनायेंगे,     अपने   ऊपर,    विश्वास   तो  हो.

ये,  दुनिया,   यूँ  ही,   चलती  है,    और  समय,   बदलता  रहता  है.
गर्दिश,  में,   हों   तारे  जब,     हाथों  से,   समय    फिसलता  है.
इसलिये,  समय  को,  पहचानो,    ये,  समय,  यूँ  ही,  बर्बाद,  न  हो.
करो,  भरोसा,  अपने  पर,    जो,  गलत  हुआ,  वह,  फिर  न  हो.

मौन,  मुखर  भाषा,  न  सही,    पर,  सशक्त  प्रहार,   निशाने  पर.
नि:शब्द – उर्जा,   काम  करे,    जहाँ,  शब्द  विफल  हों,   मुहाने  पर..
संयम  और   विश्वास,   हमारा,      हर,   मुश्किल   से,   उबारेगा.
मौन,  एक   हथियार  बनेगा,    जो,   हुआ  नहीं,   वह,  अब  होगा.

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