जीवन : भाग - ३
जीवन एक सन्ग्राम, द्वन्द अच्छआई - बुराई.
तय करना होगा हमको, किस ओर हऐ जाई.
द्वन्द - युद्ध यह भारी पड्ता, कभी-कभी सम्बन्धो पर.
धीरज से करे सच का सामना, जीवन के दोराहे पर.
अर्जुन को उपदेश कर्शण का, गीता के अध्याय बने.
शत-पर्तीशत, हम सब पर लागू, आत्मशक्ती ही केन्द्र बने.
कुछ तो लोग कहेगे, लेकिन हम पथ-विचलित ना होगे.
जब भी मोअका आये ऐसा, मन-दिग्दर्शक हम होन्गे.
जब-जब जीवन को जीने मे, मन की शान्ति भन्ग हुई.
समझो गलती हुई कही पर, सजग चेतना हएइ सोई.
मन-विश्लेशण, निश्पछः भाव से, ऐसा क्या हमने हेअ किया.
कारण ढूढ उपाय करे, यदि बचना, जीवन - नर्क जिया.
यू तो गलती सब ही करते, कभी-कभी अनजाने मे.
जीवन - धर्म कहता स्वीकारे, बाकी व्यर्थ गन्वाने मे.
दर्ढ-निश्चय से वादा कर लो, गलती नही दोहरायेगे.
जीवन फिर से मुस्कायेगा, खुशहाली हम लायेन्गे.
जीवन का सन्ग्राम जटिल हेअ, जब-जब मोह-माया मे फन्से.
मानवता की कडी परीछा, दोअलत-लालच, मन मे बन्से.
जीवन-जन्ग जीतने को, कर्तव्य-बोध ले साथ चले.
अपना धर्म निभाना होगा, चाहे जो हालात बने.
जब-जब दुविधा हो मन मे, घिरे हुऐ अपनो के बीच.
देश-धर्म सबसे ऊपर हेअ, पूज्य मही-मन्डल के बीच.
अपना सब-कुछ देकर भी, यदि देश-धर्म को बचा लिया.
समझो सऔदा सस्ता ही है, सब धर्मो का मान किया.
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