बसन्त.
ऋतुराज बसन्त की अगवानी,
धरती का काया – कल्प हुआ.
दिन, रात बराबर से लगते,
मौसम भी, खुशबूदार हुआ.
त्रण – त्रण ने ओढ़ी
हरियाली, पीली – पीली सरसों फूली.
मदमस्त हुए पशु – पक्षी
भी, तितली घर का, रस्ता भूली.
धरती की फूलों की चुनरी,
में, भौरों ने की, नक्काशी.
चुन – चुन कर, रंग संजोये
हैं, बेलों, बूटों ने, बन राशी.
स्वागत में, कोई कसर न हो,
किया निश्चित, कीट – पतंगों ने.
जन – जीवन, वन – उपवन, महका, सुना राग – बसन्ती कोयल ने.
हर जीव, ताजगी में
नहाया, और अन्तस में, अनुराग जगा.
सन्देश, नवीनता का छाया,
स्पर्श, संवेदना, प्रेम – पगा.
नफरत छोडो, मिल – जुल के
रहो, कहती कुदरत, सन्देश सुनो.
जीवन, अनमोल – उपहार मिला, यह व्यर्थ न हो, उसे चुनो.
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