अपनापन.
जून की तपती दोपहरी,
लू से झुलसते पेड़ – प्राणी |
एक से दूसरी टहनियों,
पर फुदकती चिड़िया |
सूरज की ओर देख,
असहाय सिहर गई |
बेजुबान पेड़ ने समझी,
बेजुबान प्राणी की पीड़ा |
झटक कर घने पत्ते,
आँचल में छुपा लिया.
तपती धूप और गर्मी,
से बेहाल कछुआ |
सूखे पोखर की तलहटी,
छुपने की असफल कोशिश |
कंकाल आखिरी – साँसें गिनता,
मिला मरणासन्न मेंढक |
बोला – दोस्त मैं हूँ न,
चल दिया पीठ पर लाद |
जलती धरती भूखा – प्यासा,
चलता रहा बेपरवाह |
गौ – धूलि की बेला,
गरमी कम हो गई |
शेरनी का नन्हा शावक,
माँ खो गई |
जंगली – कुत्तों का झुण्ड,
पिल्लों संग आ गया |
कुतिया की ममता जागी,
सुलाया और दूध पिलाया |
सवेरे ढूँढती शेरनी आई |
पिल्लों संग खेलता देख,
आँख भर आई |
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