प्रश्न-चिन्ह.
प्रश्न-चिन्ह लग रहा आज,
जीवन के किये-करायों पर.
बदला समय, बडी तेजी से,
छूटे हम चौराहे पर.
समझ न आये, जायें कहां अब ?
समय जो आगे निकल गया.
कुछ दूरी तक पीछे भागे
साथ समेटे, जो था लिया.
अपनी कोशिश, नाकाफी थीं,
रोज बदलती दुनिया में.
इन्टरनेट का युग अब आया,
माल बिका सब धेले में.
प्रश्न-चिन्ह है लगा आज,
मां-बाप की शिक्षा-दीक्षा पर.
वो प्यार-दुलार क्या व्यर्थ गया ?
मां की ममता है कसौटी पर.
इतिहास स्वंम को दोहराता है,
न जाने कितनी बार हुआ.
जीत हुई मां की ममता की,
दोषी जन शर्मसार हुआ.
खुशी- खुशी जो सहा है मां ने,
प्रश्न-चिन्ह के घेरे में.
मां-बाप की गलती यही,
उन्होंने देखा कल को, सपने में.
सब कुछ सह कर भी,
सपने को जिया, संवारा.
जान लगा दी सीमा में रह,
प्रश्न-चिन्ह, अब नहीं गंवारा.
मां-बापू ने दिया सभी कुछ,
जो कुछ उनके वश था.
अच्छी शिक्षा, मार्ग - दर्शन,
सदाचार शामिल था.
पाठ पढाया वही, जो सीखा,
मात - पिता, गुरु - जन से.
आज अचानक प्रश्न-चिन्ह क्यों ?
पूछें हम, किस किस से ?
मां का कर्ज, कोई चुका न पाये,
कहते आये ग्य़ानी.
कटा दिये सिर हंसते-हंसते,
लाज दूध की जानी.
बदला समय, हवा है बदली.
प्रश्न-चिन्ह निष्टा पर.
खडे किये, मां-बाप कटघरे,
अपराध-बोध, सीमा पर.
लेकिन हर मुश्किल में हम भी,
करें मुकाबला डट कर.
अन्तिम विजय हमारी होगी,
प्रश्न-चिन्ह को कट कर.
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