Tuesday, June 15, 2010

भाग्य.

भाग्य.


मानव ने कुछ लिखा भाग्य में,
ब्रह्मा से नहीं पाया.
अपने श्रम-जल और सोच,
को ही हथियार बनाया.
मानव आज चांद जा पहुंचा,
नहीं भाग्य के बल से.
यह सब सम्भव हुआ, प्रेरणा,
सोच, कडी मेहनत से.
भाग्यवाद से बनें आलसी,
असफल हम जीवन में.
जैसा कर्म मिले फल वैसा,
जीवन-व्यापन क्रम में.

कर्म-यग्य़ से जीवन में,
मनचाहा फल हम पाते.
समय काल की परिधि को भी,
लांघ सफल हो जाते.
किस्मत का अस्तित्व मान लें.
तो भी यह निश्चित है.
कल जो कर्म किये थे हमने,
आज वही किस्मत है.
आज करेंगे जैसा, जो कुछ,
कल होगी वह किस्मत.
यह क्रम ही चलता अनवरत,
भाग्य कहो या किस्मत.

कर्म - प्रधान विश्व है सारा,
भेद यह जिसने जाना.
आगे निकल गया औरों से,
सबने लोहा माना.
कर्म धर्म है, कर्म ही पूजा,
कर्म सभी से ऊपर.
फल की इच्छा किये बिना,
यदि कर्म करें तो बेहतर.
ईश्वर मदद करें उनकी,
जो स्वयं मदद करते हैं.
भाग्य स्वयं ही मुस्कायेगा,
विघ्न दूर होते हैं.

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