Sunday, August 15, 2010

भूलें.

जीवन, एक भूल - भुलैया है.
भूलों से, हमारा नाता है.
हम ठोकर खा कर, गिरते हैं,
उठ कर चलना, स्वाभाविकता है.
हम में से ही, ज्यादातर,
भूल करें, तो दुखी सभी.
भूल करें, और भूल गये,
कुछ सीख्रें, ये सोचा न कभी.
जो साहस कर, निश्चय कर लें,
अब भूल को न दोहरायेंगे.
आगे बढें, बढते ही गये,
मनचाही मंजिल पायेंगे.


भूल करी, तो क्या गम है,
जीवन को आगे बढना है.
कोशिश और इच्छा-शक्ति से,
वह समय नहीं आने देंगे.
जब लज्जित होना पडा, झुके,
वो गहरा जख्म, भुला देंगे.
बहुत हो चुका, और नहीं अब,
और समय, बरबाद न हो.
नाविक की कार्यकुशलता क्या ?
जब धारा ही प्रतिकूल न हो.
ठान लिया, तो ठान लिया बस,
कोई ऎसा, काम न हो.


भूल, चुनौती देती हमको,
गिर कर, उठने का दम है ?
हां बिलकुल, इसमें क्या शक,
हम गिरें नहीं, दमखम है.
भूलों से, जो मिली चेतना,
व्यर्थ, नहीं जाने देंगे.
बीत गया, सो बीत गया है,
कल, खुशियों से भर देंगे.
भूल, भूलकर, भूल करें ना,
द्रढ - निश्चय ये हमारा है.
जीवन, फिर से मुसकायेगा,
झुकना नहीं गवारा है.

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