कहां है मेरा भारत ?
मैं सपने की बात नहीं कर रहा.
सच मैं ढूंढ रहा हूं.
आज एक यक्ष प्रश्न उभर कर,
स्वंम मुझसे पूछ रहा है,
कहां है मेरा भारत ?
अभी कुछ दशकों पहले,
हमें जो पढाया, पढा,
सीखा और सिखाया,
अब कहीं दिखाई नहीं दे रहा.
मुझे याद है अभी भी,
गांव की वह छोटी पाठशाला,
पंद्रह-अगस्त/छ्ब्बीस जनवरी,
की सुभह-सवेरे, प्रभात-फेरी.
छोटे-छोटे हाथों में,
कागज का छोटा सा तिरंगा,
जुबान पर भारत माता की जय,
वन्दे मातरम - वन्दे मातरम.
और जोश से बढते कदम.
अब सपनों की बात है.
अब तो सोचना पडता है-
भारत माता की जय बोलूं,
तिरंगा हाथ में लहराऊं,
या पुलिस के डंडे खाऊं
क्या यही है, मेरा भारत ?
नहीं, कदापि नहीं, हरगिज नहीं.
हमें पढाया, भारतीय- संविधान,
लोकतंत्र की रीढ है.
और संसद-भवन,
लोकतन्त्र का पावन मन्दिर.
फिर संविधान की उपेक्षा क्यों ?
वह भी वे लोग, जिन पर,
संविधान की रक्षा की जिम्मेदारी है.
आज जनता का धन,
हडप या हडपने की कोशिश,
में कुछ लोग,
मन्दिर में घुस आये हैं.
कोई शोर मचाये, तो कहते हैं-
तुम्हें बोलने का अधिकार नहीं.
मन्दिर प्रशासन भी चुप है.
तो क्या हम मानें -
चोर -चोर मौसेरे भाई.
मुंह की खाई, लाज न आई,
ऊपर से अब धौंस जमाई.
हम समर्थ, हम चुन कर आये.
मनमानी का लाइसेंस लाये.
तुम्हीं बताओ, कहां मैं जाऊं.
मेरा भारत कहां मैं पाऊं ?
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