सड़क.
( यह रचना, २७ जुलाई २०१५ को लिखी गई. )
सड़क, तारकोल – रोड़ी से
बनी, सिर्फ, समतल
सतह ही नहीं.
जाने – अनजाने चेहरों व् मुसाफिरों,
की,
मंजिल भी यही.
सड़क, स्वागत करती सभी
का, नहीं
भेद, अमीर,
गरीबी में.
सेठ – साहूकार, चलें मोटर – गाड़ी, या,
नंगे – पाँव, फटे – हाल लाचारी
में.
कुछ नहीं जिनके
पास, न ही रहने
का, ठौर – ठिकाना.
फुटपाथ, बने सोने का
बिस्तर, जीवन, जीने
का बहाना.
क्या धुप, और क्या
बारिश, पेड़, सड़क का,
बने
सहारा.
सर्दी बने, कोढ़
में खाज, जीता – जीवन
कभी, मौत से
हारा.
सड़क, चलने का
रास्ता, भर नहीं,
माध्यम बने, मिलाने
का.
भटक गये, जो यहीं – कहीं,
आमंत्रण, घर आने का.
मानवीय – संवेदनायें,
अच्छाई, बुराई, दिखतीं
और पनपती हैं.
लूट – लिया कोई, सरे – राह,
कोई गिरा, उसे
उठाते भी हैं.
नेता जी का,
चुनावी विजय – जुलूस, सड़क
पर पड़ता भारी.
जाम में अटकीं,
बीमार की सांसें,
ख़त्म – होती कहानी सारी.
दूल्हे की बारात का
उत्सव, या, शव
– यात्रा का
काफिला.
मूक – दर्शक सड़क बने गवाह, चलता
रहे, ये
सिलसिला.
बावजूद इसके, सड़कों
का जाल, बनता,
तरक्की की पहचान.
सुगम – यातायात, फले – फूले
व्यापार, खुलते रास्ते,
अनजान.
सड़कें हैं, तो जीवन है, देती जिन्दगी को रफ्तार
सम्मान हो, सड़क
के, नियमों का,
न होने दें, जिन्दगी,
तार – तार.
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