आँधी.
कल, तेज गर्मी के बीच,
दिन ढले, मौसम ने ली अँगड़ाई.
घिर आये बादल, छाया अँधेरा,
पानी नहीं, बरसा रेत, आँधी
आई.
आँधी की रफ्तार, सह न पाये,
हजारों पक्षियों, जीवों के
घर.
सैकड़ों पेड़, टिन – शेड और,
गरीब – मजदूरों के छप्पर.
मेरे आँगन में भी,
अशोक का, एक पेड़.
देर तक खाये हिचकोले,
झुका, पर उठ नहीं पाया.
लचीलापन कम होने की सजा,
लटक गया, जैसे कुबड़ा साया.
आँधी, सिर्फ मौसम का,
उतार – चढाव, अभिशाप नहीं.
एक आँधी, मेरे मन में,
नये – पुराने विचारों की,
उठा – पटक जारी है.
अभी तक, सकारात्मकता,
का पल्लू, कस के पकड़,
नकारात्मकता को हराया.
तेज आँधी के, झौंकों ने,
कई बार, सावन के झूले,
की तरह, जीवन को,
ऊपर – नीचे किया.
लेकिन, हर बार,
धैर्य, सच्चाई ने साथ दिया.
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