Wednesday, July 14, 2010

शब्द.

कभी-कभी खामोशी की गहराईयों में,
मेरे मन में, अस्फुट शब्द गूँजते हैं.
वे शब्द, जिन्हें बरसों पहले,
सुनने का मौका नहीं मिला.
या सुनाये जाने पर,
बाहर का रास्ता दिखा दिया.
जैसे किसी प्रितिबन्धित क्षेत्र में,
पकडे गये अजनबी,
के साथ सलूक किया जाता है.
आज न जाने क्यों, ये शब्द,
मुझे बहुत प्रिय लगने लगे हैं.
समय के लम्बे अन्तराल ने,
इनकी उपयोगिता बढा दी है.
कई दशकों पहले, के अतीत में,
आज जब झांकता हूं,
तो ये शब्द ही हैं,
जो मुझे वर्तमान से, अतीत की,
धुंधली यादों का परिचय कराते हैं.
अतीत, जो सुनहरा था.
आज और भी खूबसूरत लगने लगा.
जैसे कोई पुरानी जडी-बूटी,
मरणासन्न व्यक्ति के प्राण बचा ले.
या फिर किसी कंगाल को,
झौंपडी की नींव, खोदते समय,
पूर्वजों का गडा धन, नजर आये.
सूत्रधार बने ये शब्द, बीते समय,
और घटनाओं की, प्रासागिंकता का.
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