Wednesday, July 21, 2010

जल ही जीवन.

जल ही जीवन.

बारिश की नन्हीं, बूंदों से,
तपती धरती कुछ शान्त हुई.
जीवों को, जीवन-दान मिला,
चहुं ऒर, खुशी की बात हुई.
सुखे मुरझाये, पौधों में,
नव-प्राणों का संचार हुआ.
सूखी माटी भी, महक उठी,
कण-कण में, जीवन-वास हुआ.

वर्षा की खुशी में, नाच उठे,
मेंढक, मोर, किसान.
बादल देख पपीहा बोले,
पीहू - पीहू की तान.
खेतिहर-मजदूर हुए खुश,
बंधी काम की आस.
जन-जीवन फूला न समाये,
सपने अपने पास.

वन्य-जीव, पशु-पक्षी, सभी ने,
खुश हो, ली राहत की सांस.
हरियाली की चादर फैली,
तान बांसुरी की, बिन बांस.
जीव-जन्तू सब , जश्न मनायें,
वर्षा का जादू छाया.
हंसी-खुशी, गल-बांह मिलें सब,
फूल खिले, जीवन भाया.

वर्षा ने फूंकी नई जान,
जन-मानस के, तन-मन में.
काम शुरु हो गये सभी,
जोश भर गया, जन जन में.
जल ही जीवन देता सबको,
बिन पानी सब सून.
जल-संचय को निश्चित कर लें,
ताकि बहे ना, जल पर खून.

पानी को बरबाद करें ना,
यही समय की मांग.
सबका हित ही, अपना हित हो,
खीचें ना, दूजे की टांग.
वर्षा-जल का सदुपयोग ही,
भावी पीढी को बचायेगा.
जल ना बने युद्ध का कारण,
जीवन बच ना पायेगा.
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