मेरा - सच.
सुना है, शाश्वत सच,
कभी नहीं बदलता.
बिल्कुल सोने की तरह.
समय, वर्षा, हवा,
और आग में तप कर भी,
सोना, सोना ही रहता है.
विषम परिस्थियों में,
चमक भले ही, फीकी पड जाये,
कीमत कम नहीं होती.
लेकिन आज ।
मैं जो देख, सुन रहा हूं,
वह वैसा नहीं है.
वर्षों जिस सच को,
जिया, पहना, ओढा,
रोज, कपडों की तरह,
लेकिन, जब वक्त आया,
तो उसी सच ने,
मुझे झूठा साबित कर दिया.
क्या कहूं, इस सच को ?
मैं गांधी, या हरिश्चन्द्र नहीं हूं.
ना ही मेरे पास सबूत है,
सच बोलने/ कहने का.
बस एक, छोटी सी आशा,
शायद, सोने की तरह,
मेरा-सच भी, एक दिन,
स्वमं को सिद्ध करे,
सच कभी नहीं बदलता.
---०---
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