बोली.
कोयल की मीठी - बोली, क्यों ?
सबके मन को, भाती है.
और, कौए की कांव-कांव क्यों ?
रह -रह, मन उचटाती है.
कुछ तो राज छुपा बोलों में,
मन वश में, कर लेते हैं.
कडवे - बोल, हमेशा मन को,
नफरत ही तो देते हैं.
आओ सोचें, सीखें हम भी,
पशु-पक्षी, पेडों, चिडियों से.
सब अपने हैं, हम भी, सबके,
मिल-जुल रहें, पडोसियों से.
बोली में, जादुई असर है,
बिगडा काम, भी बन जाये.
कर्कश, अहंकार की बोली,
महाभारत लडना पड जाये.
कडवी-बोली, मन विचलित कर,
गहरे घाव बनाती है.
फिर विनाश की लीला आगे,
नाकों चने चबाती है.
इसीलिये, शब्दों के चयन में,
होशियार, समझदार बनें,
मन में, बोल तोल कर बोलें,
खुशियों के हकदार बनें.
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