Saturday, May 16, 2015

माँ

माँ के लिये, न खौल उठे जो, खून नहीं, वह पानी है.
बूढी माँ को, मिले ना आदर,  वह बेकार जवानी है.
माँ का दुःख, जो समझ न पाये, वह औलाद निक्कमी है.
अपनी मस्ती, सुख अपना ही, रोये, पछताये, जननी है.

माँ का दर्जा, सर्व विदित, है नहीं, दूसरा सानी.
विश्व-विधाता, स्वम झुक गये, माँ की बात, ही मानी.
माँ, शब्द, नाम है शक्ति का, जो जीवन- सुख देती है.
माँ, कबच बने, हर संकट में, हमें सुला, जगती है.

माँ ने सांसें दी हैं हमको, रक्त, अस्थि, माँ का ही दिया.
मेरा, सब अस्तित्व है, माँ ही, सब कुछ सह, हमें बड़ा किया.
माँ का कर्ज है, जीवन पर, सिर्फ दिया ही, कुछ ना लिया,
माँ को, थोड़ी खुशी दे सकूँ, कुछ तो करूँ जो नहीं किया.

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( सभी माताओं को समर्पित यह यह रचना, ३० मार्च २०१३ को लिखी गई.       

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