यूं ही
जीवन में संयोग कभी, बस यूं ही बन जाते हैं.
अनजानी राहों के बीच, मन- मीत नजर आते हैं.
दीपक की लो राह दिखाये, भटकें जब अंधियारे में.
सूरज – रश्मि रंग भर देती, जीवन के गलियारे में.
अकस्मात कुछ भी ना होये, कुछ तो कारण होगा.
विज्ञान- ज्ञान में बंधे सभी, बिन बादल जल बरसेगा ?
निश्चय ही कोई शक्ति, नियंत्रित करती सारे जग को.
तब ही दो अनजान बांटते, सुख- दुःख, जीवन- धन को.
कैसा ये खेल विधाता का, कोशिश भी कभी नहीं फलती.
बिन मांगे मोती मिलते हैं, मांगे भीख नहीं मिलती.
रिश्ते- नाते हमें बनायें, या हम उन्हें बनाते हैं.
जो भी समझो, यह तुम पर है, हम-सब आते- जाते हैं.
लेकिन कुछ तो है शक्ति- सूत्र, जो नजर नहीं आता है.
लाख मना कर ले कोई, बस खिंचा
चला जाता है.
क्या है ! यह संयोग मात्र, जब
अनजाने संग प्रीत जगे.
बन जायें जन्मों के नाते, जीवन-जोत, प्रभात उगे.
अनजानी राहों के बीच, अजनबी बहुत मिलते हैं.
उनमें मन- मीत नजर आये, मन में सपने पलते हैं.
ऐसा ही कुछ हुआ है, यूं ही, आदेश मान ईश्वर का.
गठबंधन, ये प्यार का बंधन, अमर- प्रेम, जीवन का.
जो भी हो, है स्वीकार हमें, आभार, भार, ईश्वर का.
नत- मस्तक हैं, धन्यवाद, उस परमपिता परमेश्वर का.
तेरा तुझ को अर्पण भगवन, हम में वह शक्ति दो.
पूरा करें किया जो वादा, कर्म- प्रेरणा भर दो.
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( यह रचना मूलतः १३ मार्च
२०१२ को लिखी गई )
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