Thursday, May 14, 2015

यूं  ही

जीवन में संयोग कभी, बस यूं ही बन जाते हैं.
अनजानी राहों के बीच, मन- मीत नजर आते हैं.
दीपक की लो राह दिखाये, भटकें जब अंधियारे में.
सूरज – रश्मि रंग भर देती, जीवन के गलियारे में.

अकस्मात कुछ भी ना होये, कुछ तो कारण होगा.
विज्ञान- ज्ञान में बंधे सभी, बिन बादल जल बरसेगा ?
निश्चय ही कोई शक्ति, नियंत्रित करती सारे जग को.
तब ही दो अनजान बांटते, सुख- दुःख, जीवन- धन को.

कैसा ये खेल विधाता का, कोशिश भी कभी नहीं फलती.
बिन मांगे मोती मिलते हैं, मांगे भीख नहीं मिलती.
रिश्ते- नाते हमें बनायें, या हम उन्हें बनाते हैं.
जो भी समझो, यह तुम पर है, हम-सब आते- जाते हैं.

लेकिन कुछ तो है शक्ति- सूत्र, जो नजर नहीं आता है.
लाख मना  कर ले कोई, बस खिंचा चला जाता है.
क्या है !  यह संयोग मात्र, जब अनजाने संग प्रीत जगे.
बन जायें जन्मों के नाते, जीवन-जोत, प्रभात उगे.

अनजानी राहों के बीच, अजनबी बहुत मिलते हैं.
उनमें मन- मीत नजर आये, मन में सपने पलते हैं.
ऐसा ही कुछ हुआ है, यूं ही, आदेश मान ईश्वर का.
गठबंधन, ये प्यार का बंधन, अमर- प्रेम, जीवन का.

जो भी हो, है स्वीकार हमें, आभार, भार, ईश्वर का.
नत- मस्तक हैं, धन्यवाद, उस परमपिता परमेश्वर का.
तेरा तुझ को अर्पण भगवन, हम में वह शक्ति दो.
पूरा करें किया जो वादा, कर्म- प्रेरणा भर दो.
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( यह रचना मूलतः १३  मार्च २०१२ को लिखी गई )




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