जन्मदिन और
आशा.
एक
जुलाई याद दिलाये, बीतै
ढेरो, स्वर्णिम पल.
जन्मदिन की लाख बधाई, सोनू, सोना, क्षण, हर पल.
दूर भले
हो, पर लगता, जैसे हम सब, कल ही मिले.
पापा
जी, मम्मी जी, कहते, छुये पैर, और मिले गले.
हम न
सही, आशीर्वाद हमारा, सदा तुम्हारे साथ है.
प्रतीक्षा
की घड़ियाँ लम्बी, आँखे भी कुछ थकी थकी.
आशा
पलकों में है सोई, और मन में भी, रची बसी.
बरसों पहले, के वे सपने,
शायद अब रंग लायेगे.
चुपके चुपके उतर धरा पर, पीछे
से चोंकायंगे.
बीत रही है रात ये पल पल,
उजियारा होने को है.
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यह रचना मूलत २९ जून सन २२११ के दिन लिखी थी, उन दिनों मेरा बेटा
संदीप विदेश में
पढाई समाप्त करने वाला था.
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