Friday, July 17, 2015

काम.


( यह रचना, ०९ जुलाई २०१५ को लिखी गई. )

प्रक्रति  हमें,  समझाती  पल – पल,    उठो,  चलो,  कुछ  काम  करो.
सूरज,   चाँद – सितारे,   कहते,    हम,   हैं  ना,   फिर,  काहे  डरो.
तोता – मैना   बातें  करते,    क्योँ,   मेहनत  से,   रहे   मुंह – मोड़.
घर – घर  गौरैया   कहती,  फिरती,    काम  करो,   आलस  दो  छोड़.

यह  जन्म  हमारा,  व्यर्थ  न  हो,    सोचो,  समझो  और  तय  कर  लो.
हम – सब  में,   ढेरों  है  शक्ति,     कुछ  काम  करो,   हिम्मत  कर  लो.
बहती – वायु,   झरने,   नदियाँ,      सदियों   से,    हैं,   समझाय    रहे.
चलना,  कुछ – करना,   जीवन  है,    जो  मिला  आज,  कल  रहे,  न  रहे.

कल  का  काम,   आज  करना  है,     और,   आज  का,   अभी  करो.
मिट्टी  का   सन्देश   यही,     जीना  है,   तो    काम   करो.
तभी,  न्याय   कर  पायेंगे  हम,     अपने   जीने  का,  अधिकार.
तन,  सुगठित,   मन  शान्त  रहेगा,    खुशहाली  की,   बहे  बयार.


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