गरीब –
किसान.
( यह रचना, १५ जुलाई २०१५ को लिखी गई. )
गाँव में, गरीब
की बेबसी, बेमौसम – बारिश की मार.
एक – खेत की खेती, पल रहा, पूरा परिवार.
काले पड़
चुके, कुछ दाने, ही, घर तक आये.
चारा भी, सैड
गया, खेत में,
भुखमरी पशुओं की,
लाये.
सरकारी – मद्द की
उम्मीद, उम्मीद बन कर,
रह गई.
जमा – पूंजी हुई ख़त्म, भैंस
भी, बिक
गई.
घर का, छप्पर – पुराना, टूट
गया, सोचा था, बनाना.
गंगा – जमुना बहेंगी, घर
में, चाहता
था, सिर छुपाना.
असाढ़ में, फसल
की तैयारी, घर – में,
बीज का दाना
नहीं.
उधार, ज्यों का त्यों, पिछली फसल का ही.
उजड़ा – उजड़ा सा, मंजर
है, आँखों में
भरा, समन्दर है.
हे ईश्वर, नैया पार
करो, पानी, नैया
के, अन्दर
है.
बिटिया आई, और
लिपट गई, बोली,
बापू न
हो उदास.
एक और एक,
ग्यारह बनते, करने
की हिम्मत, अपने
पास.
जगी चेतना, फिर
से, मुझ में,
सुन, प्यारी – बिटिया के बोल.
किस्मत नहीं, मेहनत
देगी साथ, बोल,
हैं ये, कितने
अनमोल.
- - - - - ० - - - -
-
No comments:
Post a Comment