धैर्य.
( यह रचना, २४ जुलाई २०१५ को लिखी गई. )
हम दुखीं हैं
इसीलिये, क्योंकि, कोई,
हमें बरदाश्त नहीं.
कुछ भी, यदि
मन के खिलाफ,
सुनने को, तैयार
नहीं.
फिर, कैसे बदलें
हालात ? और मुश्किलें
हों आसान.
छोटी सी बात -
रख, मुहँ बन्द,
धैर्य को, दें
मान.
जिन्दगी में, ताल – मेल
की कमी, अक्सर,
हमें खलती है.
बिगड़ जाता है,
काम, बनते – बनते, बेवजह, नफरत
पलती है.
थोड़ी सी, समझ,
और सहनशीलता, बदल
सकती है, माहौल
को.
बस, सुन लें,
दूसरों को भी,
शान्त – मन, सम्भावना को.
सड़क पर, रोडरेज
की घटना, आम
हो गई है.
वाहन, गलती से,
छू भी दिया,
समझो, आफत आ
गई है.
जानलेवा – क्रोध और यातायात
ठप्प, शिष्टाचार भी,
भूल गये.
बस, मैं और
मेरा रौब, बाकी
- सब, .भाड
में, गये.
शान्ति, कैसे रह
सकती है ? एक – दूसरे
को, सहन किये
बिना.
बात, बन सकती
है, क्या ? दूसरों
का द्रष्टिकोण समझे
बिना.
सहनशीलता का अर्थ,
कायरता, या कमजोरी
नहीं.
चरित्र की महानता
है, ये, सही
रास्ता है, यही.
- - - - - ० - - - - -
No comments:
Post a Comment