Sunday, July 26, 2015

धैर्य.


( यह रचना, २४ जुलाई २०१५ को लिखी गई. )

हम  दुखीं  हैं  इसीलिये,  क्योंकि,    कोई,  हमें  बरदाश्त  नहीं.
कुछ  भी,  यदि  मन  के  खिलाफ,    सुनने  को,  तैयार  नहीं.
फिर,  कैसे   बदलें  हालात ?     और  मुश्किलें   हों   आसान.
छोटी  सी  बात -  रख,  मुहँ  बन्द,     धैर्य  को,   दें   मान.

जिन्दगी  में,  ताल – मेल  की  कमी,    अक्सर,  हमें  खलती  है.
बिगड़  जाता  है,  काम, बनते – बनते,    बेवजह,  नफरत  पलती  है.
थोड़ी  सी,  समझ,  और  सहनशीलता,    बदल  सकती  है,  माहौल  को.
बस,  सुन  लें,   दूसरों  को  भी,     शान्त – मन,    सम्भावना   को.

सड़क  पर,   रोडरेज   की   घटना,      आम   हो   गई   है.
वाहन,  गलती  से,  छू  भी  दिया,    समझो,  आफत  आ  गई  है.
जानलेवा – क्रोध  और  यातायात  ठप्प,    शिष्टाचार  भी,  भूल  गये.
बस,   मैं   और   मेरा  रौब,     बाकी  -  सब,   .भाड   में,  गये.

शान्ति,  कैसे  रह  सकती  है ?    एक – दूसरे  को,  सहन  किये  बिना.
बात,   बन  सकती  है,  क्या ?    दूसरों  का  द्रष्टिकोण   समझे  बिना.
सहनशीलता    का   अर्थ,   कायरता,      या     कमजोरी    नहीं. 
चरित्र   की   महानता    है,   ये,      सही    रास्ता    है,   यही.


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