होली. – २०१५
( यह रचना, ०१ मार्च २०१५ को
लिखी गई. )
होली, त्यौहार है,
रंगों का, यह,
जीवन का, स्पन्दन
है.
ये, रंग भी, कुछ – कुछ कहते
हैं, जीवन, रंगों
का, बन्धन है.
कहने को, चुटकी – भर रंग
है, यह, खुशियों
का, आलिंगन है.
होली तो, एक बहाना
है, जीवन, सजना
है, संवरना है.
है मौका, भूल
न जायें हम,
जीवन, उत्सव – संग, चलना
है.
आओ, रंग लें, तन – मन,
संग – संग, होली के,
इन सतरंगों में.
भूलें, जीवन के, कडवे – सच, नई राह
बने, जीवन –बन में.
जो, गलत हुआ,
अब, ना होवे,
बस, खुश हों,
जीवन – जीने में.
जीवन, नव – निर्मित, करना
है, इन, रंगों की परछाई
में.
अबीर, गुलाल और पिचकारी, बदल रहे
दुःख,
खुशियों में.
होली के, चटकीले, ये रंग, हर
रंग, संदेशा
देता है.
रंग लो, मन,
मनचाहे – रंग में, कल, क्या
हो, किसने, देखा
है.
अपनों में, अपनापन ढूंढें,
जीवन – कर्तव्य निभाना है.
जो, बीत गया,
नहीं आयेगा, जो,
है, उसमें रम
जाना है.
ये, रंग, बनें जीवन
के रंग, जीवन,
खुशियों से, भरना
है.
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