Thursday, August 13, 2015

कविता.


( यह रचना, ३० जुलाई २०१५ को लिखी गई. )
        
सावन   की   एक   साँझ,     मैंने   आसमान   की  ओर   देखा.
घुमड़ते  बादलों  की  तरह,  कुछ  शब्द,    मन  में,  बना  रहे,  रुपरेखा.
बिन   बरसे,   बादल   छंट   गये,    हवा   ने,   किया   कमाल.
अनमने  मन   से,   ढूंड  रहा   मैं,    कविता   का   माया – जाल.

नींद  आई.  सपना  भी  आया,     पर,  कवित्ता  का  पता  न  पाया.
सवेरे  उठा,   तो  हैरान,     पूछ   रही   कविता,  कुछ   खो  गया.
नहीं.  मैंने  कहा, -  लिखना  था  कुछ,    ढूंड  रहा,  शब्दों  की  ताल.
ओफ ! कहा   कविता  ने,     क्यों   निकाल  रहे,   बाल  की  खाल.

निकला  बाजार,  देखकर  हुआ  हैरान,    दुध – मुंही  बच्ची,  लेटी  जमीन  पर.
माँ,  बना रही,  सीमेंट – रेत  का  गारा,    भरा  तसला,  रखा  सिर  पर.
अभावों   की   पराकाष्ठा  से   अनजान,     बच्ची   सो   रही   है.
और  माँ,  पसीना  पोंछ,  पल्लू  से,    मन्द – मन्द  मुस्करा  रही  है.

भीख  माँग  रही,   एक  छोटी  लड़की,    जिसे,   कुछ  पता  नहीं.
पता  है   तो   बस  इतना,    भूखी  है,   खाने  को,   कुछ  नहीं.
नाम  `क`  से   बताती  है,     आगे  के   शब्द,   स्पष्ट   नहीं.
शायद,  कृष्णा,  कावेरी   या  कविता,    घटना  है,   गवाह   नहीं.


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Sunday, August 9, 2015

सड़क.


( यह रचना, २७ जुलाई २०१५ को लिखी गई. )

सड़क,  तारकोल – रोड़ी  से  बनी,    सिर्फ,  समतल  सतह  ही  नहीं.
जाने – अनजाने  चेहरों   व्   मुसाफिरों,     की,  मंजिल  भी   यही.
सड़क,  स्वागत  करती   सभी  का,     नहीं  भेद,   अमीर,  गरीबी  में.
सेठ – साहूकार,  चलें  मोटर – गाड़ी,    या,  नंगे – पाँव,  फटे – हाल  लाचारी  में.

कुछ  नहीं   जिनके  पास,     न  ही   रहने  का,   ठौर – ठिकाना.
फुटपाथ,  बने   सोने  का  बिस्तर,     जीवन,   जीने  का   बहाना.
क्या  धुप,   और  क्या  बारिश,    पेड़,   सड़क  का,   बने  सहारा.
सर्दी  बने,  कोढ़  में  खाज,    जीता – जीवन  कभी,  मौत  से  हारा.

सड़क,  चलने  का  रास्ता,  भर  नहीं,    माध्यम  बने,  मिलाने  का.
भटक  गये,   जो   यहीं – कहीं,     आमंत्रण,   घर   आने  का.
मानवीय – संवेदनायें,  अच्छाई,  बुराई,    दिखतीं  और  पनपती  हैं.
लूट – लिया  कोई,  सरे – राह,    कोई  गिरा,  उसे  उठाते  भी  हैं.

नेता  जी  का,  चुनावी  विजय – जुलूस,    सड़क  पर  पड़ता  भारी.
जाम  में  अटकीं,  बीमार  की  सांसें,    ख़त्म – होती  कहानी  सारी.
दूल्हे  की  बारात   का  उत्सव,     या,  शव – यात्रा   का  काफिला.
मूक – दर्शक   सड़क   बने  गवाह,     चलता  रहे,   ये  सिलसिला.

बावजूद  इसके,  सड़कों  का  जाल,    बनता,  तरक्की  की  पहचान.
सुगम – यातायात,   फले – फूले  व्यापार,    खुलते  रास्ते,  अनजान.
सड़कें   हैं,   तो   जीवन   है,     देती   जिन्दगी   को   रफ्तार
सम्मान  हो,  सड़क  के,  नियमों  का,  न  होने दें,  जिन्दगी,  तार – तार.

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