Saturday, February 27, 2016

 बसन्त.

ऋतुराज बसन्त की अगवानी,   धरती का काया – कल्प हुआ.
दिन, रात  बराबर से  लगते,   मौसम भी,  खुशबूदार हुआ.
त्रण – त्रण ने  ओढ़ी हरियाली,   पीली – पीली  सरसों फूली.
मदमस्त हुए  पशु – पक्षी भी,   तितली घर का, रस्ता भूली.

धरती की  फूलों की  चुनरी,   में, भौरों ने  की,  नक्काशी.
चुन – चुन कर,  रंग संजोये हैं,   बेलों, बूटों ने,  बन राशी.
स्वागत में, कोई कसर न हो,   किया निश्चित, कीट – पतंगों ने.
जन – जीवन, वन – उपवन, महका, सुना राग – बसन्ती कोयल ने.

हर जीव,   ताजगी में नहाया,   और अन्तस में,  अनुराग जगा.
सन्देश,  नवीनता  का छाया,   स्पर्श,  संवेदना,   प्रेम – पगा.
नफरत छोडो,  मिल – जुल के रहो,  कहती कुदरत, सन्देश सुनो.
जीवन, अनमोल – उपहार मिला,   यह व्यर्थ न हो,  उसे चुनो.

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