Thursday, July 23, 2009

जीवन : भाग - २


यह जीवन है, इस जीवन का, यही है रन्ग - रुप.
यह न सोचो, इसमै अपनी हार है या जीत है.
जीवन उसी का जइसने, समझी यह रीत है.
हमै मेइला क्या ?क्यो यह हो गया ? यह ही तो जीवन है.
यह जेइद छोडॊ, मुन्ह न मोडो, जीवन एक दर्शन है.
यह जीवन है .............

अक्सर ही शेइकायत होती, हमे है मिला क्या ?
क्या कभी है सोचा हमने ? जीवन को देइया क्या ?
भेद ये जाना, तो मुश्किल सब जीवन की आसान बने
सुख - दुख आती जाती छाया, जीवन का दर्पण है
यह जीवन है ............

जीवन है जीने की कला, जो कम लोगो को ही आये
हम मे से है सफल वही, जो भान्प समय को पहचाने
ठीक समय पर, सही ले नेइर्णय, और उसे सम्पउर्ण करे
समय-रेत पर, नेइशान पान्व के, जीवन को अर्पण है
यह जीवन है..............

जब - जब दुविधा छाये मन मे, जीवन एक सन्ग्राम बने.
जीत उसी की नेइश्चित है, जो सन्यम, विवेक से कर्म करे.
सबसे ऊपर देश-धर्म है, फिर अपनो की बारी है.
कुछ कर दे औरो के लिये भी, तभी. धन्य वह छ्ण है.
यह जीवन है...............

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