Monday, August 2, 2010

जो होता है, ठीक ही होता.

जो होता है, ठीक ही होता.

इस वैग्य़ानिक युग में भी,
हैं कुछ रहस्य, अनसुलझे.
सब प्रश्नों के, मिले न उत्तर,
कुछ में पड कर, उलझे.
अन्धविश्वास का नहीं पक्षधर,
मैं चाहूं, बस इतना,
आधार बने आकार, सत्य का,
सार्वभौम सच जितना.
क्यों हम इस दुनिया में आय़े ?
क्या सब, पहले से निश्चित ?
है वह कौन, अद्रश्य शक्ति ?
करे नियन्त्रित, कार्यान्वित.

इसीलिये कहते आये क्या ?
जो होता है, ठीक ही होता.
जो होगा, वह ठीक ही होगा,
समय - चक्र, चलता ही रहता.
कौन बचाने वाला है वह ?
एयर-क्रैश में, जो बच जाये.
प्रलय और तूफानों में, वह कौन ?
जो किश्ती, बन कर आये ?
चारों और, मौत का तांडव,
गहरा संकट, छाया है.
जीवित बचता, बचने वाला,
कौन बचाने आया है ?

बडे - बडे वैग्य़ानिक, डाक्टर,
भी, रह जाते सकते में.
मौत के मुंह से, कौन बचाये ?
असम्भव, सम्भव पल भर में.
आदि - शक्ति, या ऊर्जा - शक्ति,
जो, विद्य्यमान है, कण कण में.
कुछ तो है, जो कभी बनाये,
कभी बिगाडे, क्षण - क्षण में.
चमत्कार, या महज छ्लावा ?
या वास्तिवकता, त्रण त्रण में.
ईश्वर का अस्तित्व नहीं यदि,
जीवन - स्रष्टि, जल - थल में ?

सभी धर्म - सम्प्रदाय, के दावे,
अलग, अलग और अलग नहीं.
अपने को सब, बडा ही मानें,
मूल - प्रश्न है, वहीं का वहीं.
आऒ हम सब खोज करें,
मानव, मानवता के लिये.
वैग्य़ानिक-सच, सब के ऊपर है,
सबकी शक्ति, सबके लिये.
धर्म हमारा, मानवता हो,
सब की हो, पहचान एक.
हम सब हैं बराबर, विश्व एक.
मालिक है एक, करें कर्म नेक.
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