Friday, May 15, 2015

परिवार

परिवार
परिवार नहीं हम चुनते हैं, ज्ञानी- चिन्तक कहते आये.      
पूर्व- निर्धारित, माप- दण्ड ही, परिवार का कारण बन जाये.
पूर्व- जन्म के सत्कर्मो / दुष्कर्मों, प्रयासों, का लेखा- जोखा.
तय करता है, कहाँ जन्म हो, और परिवार की रुपरेखा.

ईश्वर करता सम्पूर्ण न्याय, निष्पक्ष, सभी प्राणी के लिये.
किसे महल और किसे झोंपड़ी, पारिवारिक उपहार दिये.
प्राणी का परिवार ही जग में, प्रथम और अन्तिम आश्रय.
परवरिस और पालन- पोषण, अन्तर का केंद्र है परिवाश्र्य.

परिवार के कारण ही कुछ को, सुविधा, प्रतिष्ठा मिलती है.
और इसी कारण. कुछ में, भुखमरी, गरीबी पलती है.
परिवार हमें सब- कुछ देता, प्रष्ठभूमि और दायरे में.
फर्ज हमारा भी है बनता, विश्वास करें सत्कर्मों में.

परिवार हमें है, नहीं रोकता, आगे बढ़ने, सत्कर्मों से.
कड़ी मेहनत, और सूझ- बुझ, लड़े अभाव, गरीबी से.
हिम्मत हो, और जिजीविषा हो, कुछ भी पा सकते हैं.
सर्वोच्च लक्ष्य भी, नहीं असंम्भव, हासिल कर सकते हैं.

अब हम सोचें, हमने दिया क्या ? परिवार ने हमको इतना दिया.
कुछ तो सार्थक करें, स्वयं को, नई आशा, और नये विचार.
लाभ मिले मानव- जाति को, पूरा विश्व, हमारा परिवार.
तभी सफल हो, जीवन अपना, धर्म हमारा, मानव- परिवार.


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