Thursday, June 11, 2015

सूरज सच का.
( यह रचना, ३ अप्रैल, २०१४ को लिखी गई. )

सच का सूरज , ना डूबा,   ना डूबेगा,  ये सच है.
अंतिम विजय, सत्य की होती,   यह भी, सर्वविदित है.
सच की डगर,  नहीं है आसां,   लोहे चने,  चबाना है.
तैयार है जो,  सब खोने को,   सच को,  उसने जाना है.
सच पर चलना,  अंगारों पर,    चलने,  जैसा,  ही  है.
कदम, कदम, मुश्किल से जूझना,  गिरकर  उठना  ही है.

भले ही, कोई खुश  हो ले,   झूठे ने, सच को,  हरा दिया.
समझो,  सूरज, घिर गया, घटा,  विजय, समझ, आनन्द लिया.
झूठ – घटा, से,  सच का सूरज,    जब,  बाहर  आयेगा.
टिक  ना  पाये,  झूठ – फरेबी,    सिर के बल,  भागेगा.
सच,  एक ताकत,  स्वम बने,   टकराव की नौबत,  जब हो.
शर्त यही,  सच, शत – प्रतिशत, हो,  अर्ध,  – सत्य, सच, ना हो.

सच,  एक पूजा,  सच,  भक्ति है,   सच से,  बड़ा है,  धर्म नहीं.
सच  की  साधना,  लम्बी है,    हो,  देर   भले,  अन्धेर  नहीं.
काँटों, भरी,  हैं,  सच की राहें,    तैयार हैं, हम,  सब,  सह लेंगे.  
कठिन – परीक्षा,  कैसी  भी,    दिन – रात,  बराबर  कर  देंगे.
सच,  का  सिर,  झुकने  नहीं  देंगे,   नियति, से,  ये,  वादा  है.  
हर  कीमत, पर,  सच  की  रक्षा,    अपना  यही,  इरादा  है.  


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