Sunday, June 21, 2015

मन का विश्वास.


   ( यह रचना, ०७ जुलाई, २०१४ को लिखी गई. )

नन्हीं  चींटी,  जब,   दाना  लेकर,  चलती  है.
चढ़ती,  दीवारों पर,   सौ – बार,  फिसलती  है.
मन का,  विश्वास,   रगों में,   साहस  भरता  है.
चढ़ कर,  गिरना,  गिर कर,  चढ़ना,   न अखरता  है.
आखिर,  उसकी,  मेहनत,   बेकार,   नहीं  होती  है.
कोशिश,  करने वालों, की,   कभी,  हार  नहीं  होती  है.

डुबकियाँ,   सिन्धु में,     गोताखोर,   लगाता  है.
जा – जा,  कर,   खाली – हाथ,    लौट  आता  है.
मिलते  न,   सहज  ही,  मोती,    गहरे,  पानी  में.
बढ़ता,   दूना – उत्साह,     इसी,    हैरानी   में.
मुट्ठी  उसकी,  खाली,     हर – बार,   नहीं,  होती  है.
कोशिश,  करने  वालों  की,    कभी,  हार,  नहीं  होती है.

असफलता,   एक,   चुनौती,   है,     स्वीकार,   करो.
क्या,  कमी,  रह  गई,    सोचो,   और,   सुधार  करो. 
जब – तक,  न सफल  हो,   नींद,  चैन,  को,  त्यागो,  तुम.
संघर्षों,   का   मैदान,    छोड़,     मत,   भागो,   तुम.
कुछ  किये – बिना,  ही,    जय,  जयकार,  नहीं  होती  है.
कोशिश,  करने,  वालों  की,    कभी,  हार,  नहीं  होती  है.


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