मन का विश्वास. 
   ( यह
रचना, ०७ जुलाई, २०१४ को लिखी गई. ) 
नन्हीं  चींटी,  जब,   दाना  लेकर,  चलती 
है. 
चढ़ती,  दीवारों पर,   सौ –
बार,  फिसलती  है.
मन का,  विश्वास,   रगों में,   साहस 
भरता  है. 
चढ़ कर,  गिरना,  गिर कर, 
चढ़ना,   न अखरता  है. 
आखिर,  उसकी,  मेहनत,   बेकार,   नहीं 
होती  है.
कोशिश,  करने वालों, की,   कभी, 
हार  नहीं  होती 
है.
डुबकियाँ,   सिन्धु में, 
   गोताखोर,   लगाता 
है.
जा – जा,  कर,   खाली – हाथ,    लौट 
आता  है. 
मिलते  न,   सहज 
ही,  मोती,    गहरे, 
पानी  में.
बढ़ता,   दूना – उत्साह,     इसी,    हैरानी
  में. 
मुट्ठी  उसकी,  खाली,     हर –
बार,   नहीं,  होती 
है.
कोशिश,  करने  वालों 
की,    कभी, 
हार,  नहीं  होती है. 
असफलता,   एक,   चुनौती,   है,     स्वीकार,   करो. 
क्या,  कमी,  रह  गई,
   सोचो,   और,   सुधार 
करो.  
जब – तक,  न सफल  हो,   नींद, 
चैन,  को,  त्यागो, 
तुम.
संघर्षों,   का   मैदान,    छोड़,     मत,   भागो,  
तुम. 
कुछ  किये – बिना,  ही,    जय, 
जयकार,  नहीं  होती 
है.
कोशिश,  करने,  वालों 
की,    कभी, 
हार,  नहीं  होती 
है. 
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