मेरी  माँ.
( यह रचना, २६ मार्च, २०१४ के दिन, मैंने, माँ को समर्पित कर लिखी थी.
आज, वे, इस दुनिया में, नहीं हैं. उनकी यादों को, मेरी ,भावभीनी और विनम्र
श्रधांजलि. )
तिरासी से ज्यादा, बसंत, 
देख चुकी, मेरी माँ, आज भी, 
अपनी, ममता लुटाते, नहीं थकतीं. 
थक जाता है, बूढ़ा शरीर, उखड्ती सांसें.
और, निरन्तर, कमजोर होती, नजर. 
मुझे देख, सुन, कर, 
आज भी, खिल उठता है,
उनका, झुर्रियों भरा चेहरा. 
वैसे ही, जैसा, दशकों से, होता आ रहा है.
बुढ़ापे के, अपने, दुःख – दर्द, भूल कर, 
बेटे को पुचकारती है. आशीष देती है.  
पूछती है, - बेटा, कैसे हो ? खाना खाया, ?
बेशक, खुद चाहे, भूखी ही हों. 
लेकिन, मेरी चिंता है, बेटा, भूखा तो नहीं.?
वाह ! माँ की ममता. 
माँ की, संवेदनशीलता, 
उम्र के साथ, बढ़ती ही, जाती है.
बेटे, बेटियां, नाती, पोते, पोतियाँ और उनके बच्चों, 
की कुशलता और सम्पन्नता, 
प्राथमिकता की सूची में, सबसे ऊपर हैं. 
अपनी तो, जैसे, परवाह ही नहीं.
कहती है, - मेरा क्या है ?
मैंने, तो, जीवन, जी लिया. 
अब, तो, मुझे, भगवान, उठा ले, प्रार्थना करो.
आस – पास में, मुझसे, बाद के भी,
भगवान ने, बुला लिये. 
मेरा नम्बर, पता नहीं, कब आयेगा. ?
यह जानते हुए भी, कि शरीर, नश्वर है, 
बड़ा, दुःख, होता है, 
जब, माँ के मुहँ से, ये शब्द, सुनता हूँ.
आज, जीवन के, इस अंतिम छोर पर, खडी माँ, 
अपने लिये, भगवान से, कुछ नहीं, मांगती. 
मांगती है. – अपनों के लिये, 
लम्बी – उमर और खुशहाली.
बुढ़ापे की, बीमारियाँ, और मजबूरी भी, 
नहीं कर सकीं, माँ का मनोबल कम. 
परिवार पर, कोई विपत्ति, आने पर –
सान्तवना देती हुई, कहती है.-
बेटा, घबराओ नहीं. सब ठीक हो जायेगा. 
ऊपर – वाला, बड़ा दयालू है. 
हिम्मत से, काम लो. समय, बदल जायेगा. 
और, मुझे लगता है, -
सचमुच, भगवान मेरे सामने हैं.
धन्य हुआ मैं, हे भगवान !
हर जनम में, मुझे मेरी ही, माँ मिले.
मुझे, मेरी ही, माँ मिले. 
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