अब मंजिल दूर नहीं,
( यह रचना, २१ अप्रैल, २०१४ को, लिखी गई. )
ढूँढ़ ही लेंगे, मंजिल,
कब तक, हमसे छुपी
रहेगी ?
ठान लिया तो ठान लिया,
अब, देर नहीं, जय
होगी.
सोच लिया, और समझ लिया,
ये, कदम, नहीं रुकने वाले.
कोशिश, पल – पल, बढ़ती जाये,
जब तक, मंजिल, ना, आ ले.
अपना कर्म, करेंगे, मन से, पूरा,
मन और पूरी
आस.
जब – जब, कठिनाई,
आयेंगी, पूर्ण सहजता,
पर, विश्वास.
कर्म – यज्ञ, से बड़ा,
यज्ञ, दुनिया में,
नहीं, बताया.
सपनों, के स्वर्ग की, है, सीढ़ी, कर लो,
बस में, महामाया.
दीपक नहीं, बुझने देंगे,
हम, चाहे, तूफानों का दौर सही.
जान, लगा देंगे,
लायेंगे, खोयी, मुस्कान,
जो, यहीं – कहीं.
तब – तक, है, आराम – हराम,
जब – तक, सफल नहीं
हैं.
बीत गया, वह,
भूतकाल, आने वाला पल,
अपना है.
जितना, कष्ट कंटकों, में है,
और,
हटाने की,
क्षमता.
उतना ही, गौरवशाली – पल, हो, जब,
मिले सफलता.
आगे बढ़ें, और,
बढ़ते जायें, मंजिल, बुला रही है.
दृढ निश्चय, और,
ईच्छा – शक्ति, दीपक
जला रही है.
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