आज की बात.
( यह रचना, २५ अप्रैल, २०१४ को, लिखी गई )
     ( १
)
छोटा  दिल,  और 
छोटी  सोच,
मान,  घटा  दे,   चौराहे 
पर, 
इज्जत,  उछले,   गलियों, 
में. 
नाहक,  तिल  का, 
ताड  बनायें,
अनचाहे  भी,    पड़े, 
मनाना.
बातें,  ले  जायें,  
दल – दल  में.
सही,  कहे  जो,  
उसी,  से  उलझें.
फिर,  कैसे,   मसले  को 
सुलझें ? 
हालत,  बिगड़े,   पल – पल  
में. 
ईश्वर,  सद्बुद्धि   दें, 
सबको. 
हम  छोटे,  तुम, 
बड़े,  हो  भाई. 
तुम ही,  जीते,   कलियुग 
में. 
( २ )
मैं,  ही  सच्चा,    बाकी, 
झूठे. 
कुछ,  भी  कह 
लो,   ना  मानें.
उल्टा,  चोर,   कोतवाल 
को  डांटे. 
अपनी,   जिद  पर,
   अड़े 
रहें.  
समझाओ,   समझेंगे   भी  
ना.
उनको,  समझें,   राह 
के,  कांटे.
धौंस  जमायें,   बन,  बड
– बोले.
कह  गये,  क्या ? बिना 
ही  समझे.
फिर,  अपने  ही, 
कहे  को,  नाटें.
कोई  तरकीब  भी, 
काम  न  आई.
डंडे  का  डर,    दिया, 
दिखाई. 
उतरा  भूत,  तो,  थर
– थर, काँपे.
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