डरना मना है.
( यह रचना, ०८ जुलाई २०१४ को लिखी गई. )
डर के आगे, जीत है,
मत कर, सोच – विचार.
जो, डर गया,
वो, मर गया, डर को,
ही तू मार.
डरना, नहीं है,
आज से, मन में, ले तू ठान.
भय ही, भूत
का नाम है, सच,
जो रहा है,
जान.
निडर – बूंद, बादल से, निकल, सीपी
में, मोती
बनती है.
जो, डर गई, भविष्य
न कोई, कीचड,
नाली, में मिलती
है.
इसीलिये, डरना नहीं, भाई, डर, को, दूर
भगाना है.
निर्भय – मन, से, कोशिश कर, मंजिल,
अपनी पाना है.
सपने, यदि, सच करने हैं,
तो, डर काबू, पाना होगा.
मन में, बैठे, शैतानी – डर, डंडे मार,
भगाना होगा.
तब, ही, खुशहाली,
आयेगी, कामयाबी, का, साथ मिले.
काम, अधूरे, बन जायेंगे, जीवन,
मुस्काता, साथ, चले.
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