Monday, June 22, 2015

डरना मना है.


( यह रचना, ०८ जुलाई २०१४ को लिखी गई. )

डर  के  आगे,  जीत  है,   मत    कर,   सोच – विचार.
जो,  डर  गया,  वो,  मर  गया,    डर  को,  ही  तू  मार.
डरना,  नहीं   है,  आज  से,     मन   में,  ले  तू   ठान.
भय  ही,  भूत  का  नाम  है,    सच,  जो  रहा  है,  जान.

निडर – बूंद,  बादल  से,   निकल,    सीपी  में,   मोती  बनती  है.
जो,  डर  गई,   भविष्य  न  कोई,    कीचड,  नाली,   में  मिलती  है.
इसीलिये,   डरना   नहीं,   भाई,     डर,   को,  दूर   भगाना   है.
निर्भय – मन,   से,   कोशिश    कर,     मंजिल,  अपनी   पाना   है.

सपने,  यदि,   सच   करने   हैं,  तो,    डर    काबू,    पाना   होगा.
मन  में,  बैठे,   शैतानी – डर,     डंडे   मार,   भगाना   होगा.
तब,  ही,  खुशहाली,   आयेगी,    कामयाबी,  का,   साथ   मिले.
काम,  अधूरे,   बन  जायेंगे,     जीवन,   मुस्काता,   साथ,   चले.

-    - -  ०  - - -   


No comments: