Saturday, June 6, 2015

चिड़िया और कौआ.

( यह रचना, २५ मार्च, २०१४ को, लिखी गई. )

खुश रहना,  और खुशी बाँटना,   सबसे बड़ा,  काम जग में.
जब, दुःख हो, तब भी, खुश दिखना,  कठिन काम  है, अपने में.  
बचपन में,  नानी ने सुनाई,   कहानी –  चिड़िया, कौए की.
छोटी चिड़िया,  गाती, उड़ती,   खुश रहती,  कर, सारे काम.
दुष्ट  था, कौआ,  बड़ा आलसी,   सारे दिन,  करता आराम.  
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जंगल नें, बारिश में, एक दिन,  चिड़िया   भीगी, उड़ न पाये.
घात लगा,  कौए ने, पकड़ा,   चिड़िया, बेबस,  पर, मुस्काये.
मौत  सामने, खडी  देखकर,   सोचे, चिड़िया,   ना घबराये.
बोली – कौआ मामा,  सोचो,  गीले, मांस में, मजा न, आये.
मुझे धूप में, जरा सुखा लो,  फिर खाओ, तो, स्वाद भी आये.

कौए ने, झट से, हाँ कह दी,   धूप में, रख, बैठा, सुस्ताय.
खुश थी, चिड़िया, पर, पहरे में,   कौवा,  बैठा, नजर गड़ाय.  
कुछ ही, समय में,  लगा ऊँघने,   कौआ आदत से, लाचार.
सूखे पंख,  सजग, हुई चिड़िया,   फुर्र से, उड़ गई, भर रफ़्तार.
आहट से, कौआ, ज्यों, जागा,   तब तक, चिड़िया, पहुँची, दूर.
सीख, सिखा गई, हँसमुख चिड़िया,  कर, छल – बल, को चकनाचूर.


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