हम जीतेंगे.
( यह रचना, मूलतः २५ जनवरी २०१४ को लिखी गई. )
आज, बदली छाई है, छाया है
अँधेरा.
सुबह का समय हो गया, नहीं हुआ सवेरा.
सब, बाट जोहते, प्राणी, कब, छंटे अँधेरा ?
उजियारे की दस्तक हो, आतुर,
मन- मोर, बघेरा.
बाहर अँधियारा है ही, मन भी, हो रहा अनमना.
जब – जब, मन में ,मैं झाँकू, धुंधले चेहरे हैं, आइना.
कल था, जो, उजला – उजला, वही है, बदला – बदला.
समय का चक्र, घूमता, कहीं सूखा, कहीं
जलजला.
आज मैं, हारा हूँ, कल,
हम, जीतेंगे.
आज, कुछ खोया है, कल, सब पायेंगे.
आज, जो धुंधला – धुंधला,
चमकेगा कल, कोना – कोना.
आज, मन – मीत, हार मत, कल है, सोना – सोना.
अब, मंजिल दूर नहीं है, दुःख,
छंटे, अँधेरा.
उदय, सुख – सूरज होगा,
खुशियाँ, डालेंगी डेरा.
जिन्दगी, मुस्कायेगी, सभी,
हम, मिल – बाँटेंगे.
आज हम जीत जायेंगे, कल भी, हम, जीतेंगे.
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