ऐसा परिवार है, मेरा.
( यह रचना, २३ जनवरी २०१४ को लिखी गई, )
कठिन समय है, बदलेगा यह, ऐसा मेरा, है विश्वास.
हार नहीं मानूंगा, डरकर, जब
तक, चलती है, ये साँस.
माँ – पापा से, मिली विरासत,
गुरु से, शिक्षा – दीक्षा.
कब, आयेगी काम ? आज है, मेरी
कठिन परीक्षा.
नफरत नहीं, प्यार की सीख मिली,
कोशिश ऐसा करने की है.
मिलजुल, मसले सुलझा लेंगे, यही
सोच, चलने की है.
परिवार ही मेरा, है सब – कुछ, परिवार का हित, सबसे ऊपर.
यही धर्म है. यही कर्म है, यही
प्रार्थना, सो – जगकर.
सच्चाई का मार्ग, कठिन है, चला,
तभी, यह जाना.
न्याय – धर्म, मेरे साथी हैं,
डरना नहीं है,
ठाना.
नहीं रुकूँगा, नहीं हटूंगा, तूफानों के, डर से.
एक – एक मुश्किल, दूर
करूँगा, कोशिश है, तन – मन से.
मेरा अस्तित्व, परिवार से है’
परिवार- बिना , मैं, कुछ भी, नहीं.
परिवार बना, पत्नि से ही, थी पत्नि नहीं, था, कुछ भी, नहीं.
मेरी पत्नि, लाखों में एक, जिसने, ये घर – परिवार दिया.
दोनों – बेटे, सोने – जैसे, बेटी
नहीं कम, ये सिद्ध किया.
ईश्वर का दिया, सभी – कुछ
है, संभाल सका, तो स्वर्ग है, ये.
अब अग्नि – परीक्षा, है
मेरी, जीवन - संघर्ष, स्वीकार है, ये.
ऐसी आशा, विश्वास मेरा, ये
मुझको, बल देता है
सच होगा, ये सपना, मेरा, मन, मुझसे,
ये कहता है.
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