होली.
( यह रचना, १५ मार्च, २०१४ को लिखी गई. )
होली, खुशियों की रोली है, बस
रंग – बिरंगी, होली है.
नवयौवन भर दे, जीवन में, बन
रंगों की, हमजोली है.
आओ मिल, सब, खुशियाँ बांटें,
रंग भर लें, अपने, रिश्तों में.
मौसम बदला, हम भी बदलें, अपनापन
भर दें, अपनों में.
होली, त्यौहार है, खुशियौं का,
रूठे, अपनों को, मनाने का.
जो खोया है, उसे पाने का, जो है, उसमें, रंग – जाने का.
लाल, हरे, नीले, पीले, ये,
रंग, हमें कुछ कहते हैं.
रंग लो, मन, मनचाहे रंग में, मिल – जुल, धूम मचाते हैं.
प्रेम का रंग, सबसे पक्का, बाकी, सारे रंग, कच्चे हैं.
रंग लो, तन – मन, होली – रंग, में, हम अच्छे, सब, अच्छे हैं.
कड़वी बातें, और शिकवे – गिले, सब जला, बना, होलिका – दहन.
फिर, अच्छी शुरुवात करेंगे, कर, नव –
आशा, विश्वास,- चयन.
- - - ० - - -
No comments:
Post a Comment