Saturday, July 4, 2015

मौन.


( यह रचना, ११ दिसम्बर २०१४ को लिखी गई. )

जब,  कहने  का,  कुछ  असर  न  हो,     तो,  चुप  रहना,  ही  बेहतर  है.
वाचालों   को,   चुप   करना   है,   तो,     मौन – व्रत   सर्वोत्तम   है.
चुप,  बैठो,  और  इन्तजार  करो,    यदि,  समय  तुम्हारे,  साथ  न  हो.
अच्छे – दिन   काम   बनायेंगे,     अपने   ऊपर,    विश्वास   तो  हो.

ये,  दुनिया,   यूँ  ही,   चलती  है,    और  समय,   बदलता  रहता  है.
गर्दिश,  में,   हों   तारे  जब,     हाथों  से,   समय    फिसलता  है.
इसलिये,  समय  को,  पहचानो,    ये,  समय,  यूँ  ही,  बर्बाद,  न  हो.
करो,  भरोसा,  अपने  पर,    जो,  गलत  हुआ,  वह,  फिर  न  हो.

मौन,  मुखर  भाषा,  न  सही,    पर,  सशक्त  प्रहार,   निशाने  पर.
नि:शब्द – उर्जा,   काम  करे,    जहाँ,  शब्द  विफल  हों,   मुहाने  पर..
संयम  और   विश्वास,   हमारा,      हर,   मुश्किल   से,   उबारेगा.
मौन,  एक   हथियार  बनेगा,    जो,   हुआ  नहीं,   वह,  अब  होगा.

-    - - - - ० - - - - -


No comments: