Tuesday, July 21, 2015

गरीब – किसान.


( यह रचना, १५ जुलाई २०१५ को लिखी गई. )

गाँव  में,  गरीब  की  बेबसी,    बेमौसम – बारिश  की  मार.
एक – खेत   की   खेती,     पल   रहा,   पूरा   परिवार.
काले   पड़  चुके,   कुछ   दाने,    ही,   घर   तक  आये.
चारा  भी,  सैड  गया,  खेत  में,   भुखमरी  पशुओं  की,  लाये.

सरकारी – मद्द   की  उम्मीद,    उम्मीद  बन  कर,   रह  गई.
जमा – पूंजी    हुई   ख़त्म,      भैंस   भी,    बिक   गई.
घर  का,  छप्पर – पुराना,   टूट  गया,    सोचा   था,   बनाना.
गंगा – जमुना   बहेंगी,   घर  में,     चाहता  था,   सिर  छुपाना.

असाढ़  में,  फसल  की  तैयारी,    घर – में,  बीज  का  दाना  नहीं.
उधार,   ज्यों   का   त्यों,     पिछली    फसल   का   ही.
उजड़ा – उजड़ा  सा,  मंजर  है,    आँखों  में  भरा,  समन्दर  है.
हे  ईश्वर,   नैया   पार  करो,    पानी,   नैया  के,   अन्दर  है. 

बिटिया  आई,  और  लिपट  गई,    बोली,  बापू   न  हो  उदास.
एक  और  एक,  ग्यारह  बनते,   करने  की  हिम्मत,  अपने  पास.
जगी  चेतना,  फिर  से,  मुझ  में,    सुन,  प्यारी – बिटिया  के  बोल.
किस्मत  नहीं,  मेहनत  देगी  साथ,    बोल,  हैं  ये,  कितने  अनमोल.


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