Thursday, July 9, 2015

होली. – २०१५


 ( यह रचना, ०१ मार्च २०१५ को लिखी गई. )

होली,  त्यौहार  है,  रंगों  का,    यह,  जीवन  का,  स्पन्दन  है.
ये, रंग भी,  कुछ – कुछ  कहते  हैं,    जीवन,  रंगों  का,  बन्धन  है.
कहने  को,  चुटकी – भर  रंग  है,    यह,  खुशियों  का,  आलिंगन  है.
होली   तो,   एक   बहाना  है,    जीवन,   सजना  है,   संवरना  है.
है  मौका,  भूल  न  जायें  हम,    जीवन,  उत्सव – संग,  चलना  है.

आओ,  रंग लें,  तन – मन,  संग – संग,    होली  के,  इन  सतरंगों  में.
भूलें,  जीवन  के,   कडवे – सच,     नई  राह  बने,   जीवन –बन  में.
जो,  गलत  हुआ,  अब,  ना  होवे,    बस,  खुश  हों,  जीवन – जीने  में.
जीवन,   नव – निर्मित,   करना  है,    इन,   रंगों   की   परछाई  में.
अबीर,  गुलाल   और   पिचकारी,    बदल  रहे   दुःख,   खुशियों   में.

होली  के,   चटकीले,   ये  रंग,     हर  रंग,   संदेशा  देता  है.
रंग  लो,  मन,  मनचाहे – रंग  में,    कल, क्या  हो,  किसने,  देखा  है.
अपनों   में,   अपनापन   ढूंढें,     जीवन – कर्तव्य    निभाना   है.
जो,  बीत  गया,   नहीं  आयेगा,    जो,  है,  उसमें  रम  जाना  है.
ये,  रंग,  बनें   जीवन  के  रंग,    जीवन,  खुशियों  से,   भरना  है.

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