Monday, October 5, 2009

badalata mousam.

बदलता मौसम.


दशहरे के बाद गरमी ने,
थक कर हथियार डाल दिये.
सरदी आने में, समय बाकी है.
घोंसले, बनाने चिडिय़ों ने शुरु किये,
फसल पक गयी, या पकने वाली है.
यह खबर किसानों तक,
चिडियां ही लायीं हैं.
फसल पकने की खुशी,
किसानों के साथ, पक्षियों को भायी है.
तभी तो, पक्षियों के कोलाहल ने,
प्यार की मीठी धुन, सुनायी है.
हां, ये बात अलग है,
कि जीवन की भाग-दौड और प्र्दुषण ने,
हमें अंधा, बहरा बना दिया है.
सब-कुछ देख, जान कर भी,
अनजान बने या बना दिया है.

मौसम की तरुणाई,
पशु-पक्षियों को भी है भायी.
तभी तो नीलगगन में,
मनमोहक आक्रतियां बनाते,
प्यारी प्यारी आवाजों से,
बरबस ध्यान खींचते,
रुपहली शाम की, इन्द्रधनुषी आभा,
में हैं चार-चांद लगाते.
एक फसल पक गयी,
तो दूसरी बोने की तैयारी है.
फसल-चक्र या यूं कहें, जीवन-चक्र,
अनवरत चलता रहेगा.
मौसम बदलते रहेंगे.
आज हम हैं, कल और होंगे.
फिर चिडियां घोंसले बनायेंगी.
पक्षियों की कतारें, गगन में लहरायेंगी.

गरमी का मौसम जाते जाते,
दे गया यह सन्देश.
समय के विपरीत,जो अडे,
बह गये, योद्धा बडे बडे.
समय-चक्र चलता ही रहेगा,
तालमेल बैठाना है.
कठोर इतना भी न बनो,
कि टूट्ना पडे.
व्यक्ति सफल है वही,
बदलता-मौसम कहे पुकार,
सोच-समझ चल-डोल रे मानव,
देख समय की धार.
जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, यहां तक,
पेड-पौधे और बनस्पति,
मौसम के अनुसार ढालते,
यक्ष प्रश्न जीवन-रक्षा.
इसीलिये प्रक्रति को बचायें,
जीवन फूले- फले, सुरक्षा.

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