Sunday, October 18, 2009

vilupta hue daynosore.

विलुप्त हुए डायनोसोर.


बात बहुत प्राचीन, स्रष्टी की शुरुवात में.
गिने-चुने थे जीव, बनस्पति बहुतायत में.
सभी जीव, स्वच्छन्द, निरंकुश जीवन-व्यापन.
अपनी-अपनी चिन्ता थी, ढूंढें अपनापन.
सभी डरे, भयभीत, कहीं से खोजें भोजन.
भरें पेट, कैसे भी, कहीं भी,सब-कुछ भोजन.
जीवो: जीवश्य भोजनम. को सिध्दान्त बनाया.
ताकि भरें पेट कुछ, कुछ का जीवन खाया.

प्रक्रती का यह चक्र, जीवन-विकास था.
किसी एक की मौत, दूसरे का जीवन था.
लुका-छिपी का खेल, खेलते थे जंगल में.
कौन बनेगा ग्रास, किसी का, भूखेपन में.
फिर भी हुआ, विकास-चक्र गति पाई.
बडे जीव धरती पर आये, छोटों ने संख्या बढाई.
जीवन की आपा-धापी में, कुछ ने बढत बनाई.
थे अब भी भयभीत सभी, पर जीवन-जोत जगाई.

समय-चक्र ने पलटा खाया, डायनोसोर-युग आया.
था अब तक का विशालतम प्राणी, आधिपत्य जमाया.
डायनोसोर, निर्विरोध, निरंकुश, प्रथ्वी के राजा थे.
जहां भी जाते, तबाही मचाते, डरे सभी प्राणी थे.
बहुत समय तक चला यही सब, तांडव डायनोसोर का.
आपस में टकराव बढा, बन झगडा डायनोसोर का.
कम ताकतवर मारे गये, थी संख्या लगी घटने.
थे कुछ और भी कारण, अब हालात लगे बिगडने.

समय बदलता रहा, अकाल ने डेरा डाला.
ना पानी, ना बनस्पति, जिसने जीवों को पाला.
त्राही-त्राही सब ओर, मर रहे थे प्राणी बिन-मौत.
जिन्दा प्राणी, लाशों को खा, भगा रहे थे मौत.
डायनोसोर भी शामिल इनमें, बेचारे लाचार.
पेड-पौधे भी खत्म, जो अब तक, थे जीवन-आधार.
कुछ वैग्यानिक कहते, कुछ घटनायें भी थी जिम्मेदार.
इस प्रथ्वी पर तभी भयानक, विस्फोट हुए बारंबार.

चारों तरफ, धुंआ और लावा, ज्वालामुखियों ने फैलाया.
दिन-दोपहर, हुई रात भयानक, अन्धकार था छाया.
आक्सीजन हुई खत्म, धरा पर, जीवन शेष न पाया.
प्रलय हुई सम्पूर्ण, कुछ नही बचा, न कोई साया.
डायनोसोर विलुप्त हुए, प्रथ्वी के राजा - रानी.
समय-चक्र था घूम गया, बस यही कहानी.
समय समय की बात, समय सब से बलशाली.
बदला समय, मिले मिट्टी में, थे जो गौरवशाली.

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