Saturday, October 3, 2009

हे ! राम.


अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा-दिवस, दो अक्टूबर,
मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्मदिन.
भारत की विश्व को देन, अब,
देश से ज्यादा, विदेशों में मनाया जाने लगा है.
मेरे देश के लोग, और सरकारी तन्त्र.
भूलने लगे हैं, बापू के बताये मूल-मन्त्र.
राजघाट पर नेताओं का, फूल चढाना,
अब, औपचारिकता मात्र बन गयी है.
जब कि विदेशों में, आज की परिश्थितियों में,
गांधी जी की प्रासंगिकता, बढ गयी है.

क्या ही अच्छा होता, यदि हम आज भी,
बापू की बतायी सीख, सीख पाते.
ज्यादा कुछ नही, बस गांधी जी के तीन बन्दर.
की कहानी स्वयं समझ पाते.
और आने वाली पीढियों को सुनाते.
गांधी जी की सादगी तो जग जाहिर है,
पर आज शायद, सादगी के अर्थ बदल गये हैं.
आजकल पद-यात्रा, तो अतीत की बात है.
एयर इंडिया की इकोनोमी-क्लास को,
नेता जी कैटल-क्लास बता रहे हैं.

गांधी जी के सपनों का चमकता भारत,
न जाने कहां, खो गया है ?
सत्य, अहिंसा, तो अब किताबी-बातें हैं.
मंत्री, मुख्य-मंत्री या अधिकारी,
पुलिस, प्रशासन, जज, है जिन पर,
कानून-व्यवस्था की भारी जिम्मेदारी.
सबके हैं रंगे हाथ, भ्रष्टाचार, रिश्वत-खोरी.
रक्षक ही बन बैठे भक्षक, चोरी और सीना-जोरी.
यह तो सिर्फ बानगी है, तस्वीर काफी धुंधली है.
हे राम ! भेज दो गांधी, गांधी की जरुरत है.

---०---

No comments: