Wednesday, October 14, 2009

ये भी क्या दीवाली है ?


दीवाली का मौसम आये,
दिए, मिठाई,खुशियां लाये.
बाजारों की रौनक गायब,
बच्चों में उत्साह नहीं.
कमर तोड दी मंहगाई ने,
चाह तो है पर राह नहीं.
घर की थाली, खाली है.
ये भी क्या दीवाली है ?

दीवाली की बात अधूरी,
रिश्तों में मिठास नहीं.
भाई ही भाई का दुश्मन,
गैरों की तो बात नहीं.
गले-मिलना, है रिवाज पुराना,
चरण-स्पर्श, का गया जमाना.
हाय-हलो, की बोली है.
ये भी क्या दीवाली है ?

दीवाली, दीपों की पंक्ति,
लडियां हैं, पर दिए नहीं
जहर बने हैं, दूध, मिठाई,
नकली-माल की कमी नहीं.
प्लास्टिक- फूलों, से है शोभा,
मिट्टी की सोंधी-महक नहीं.
गुजिया, बाजार वाली है.
ये भी क्या दीवाली है ?

शोर-शराबा और हुडदंग,
दीवाली का नया रंग.
पटाखे घोल रहे, जहर हवा में,
आग लगे, जैसे नोटों में.
लेना सांस, हुआ दुश्वार,
बच्चे, बूढे, सब परेशान.
पर्यावरण की होली है,
ये भी क्या दीवाली है ?

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