Tuesday, June 16, 2015

 

आज की बात.


( यह रचना, २५ अप्रैल, २०१४ को, लिखी गई )

     ( १ )


छोटा  दिल,  और  छोटी  सोच,
मान,  घटा  दे,   चौराहे  पर,
इज्जत,  उछले,   गलियों,  में.
नाहक,  तिल  का,  ताड  बनायें,
अनचाहे  भी,    पड़े,  मनाना.
बातें,  ले  जायें,   दल – दल  में.
सही,  कहे  जो,   उसी,  से  उलझें.
फिर,  कैसे,   मसले  को  सुलझें ?
हालत,  बिगड़े,   पल – पल   में.
ईश्वर,  सद्बुद्धि   दें,  सबको.
हम  छोटे,  तुम,  बड़े,  हो  भाई.
तुम ही,  जीते,   कलियुग  में.

     ( २ )

 

मैं,  ही  सच्चा,    बाकी,  झूठे.
कुछ,  भी  कह  लो,   ना  मानें.
उल्टा,  चोर,   कोतवाल  को  डांटे.
अपनी,   जिद  पर,    अड़े  रहें. 
समझाओ,   समझेंगे   भी   ना.
उनको,  समझें,   राह  के,  कांटे.
धौंस  जमायें,   बन,  बड – बोले.
कह  गये,  क्या ? बिना  ही  समझे.
फिर,  अपने  ही,  कहे  को,  नाटें.
कोई  तरकीब  भी,  काम  न  आई.
डंडे  का  डर,    दिया,  दिखाई.
उतरा  भूत,  तो,  थर – थर, काँपे.

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