Tuesday, June 9, 2015

सुख – दुःख.

( यह रचना, ३१ मार्च, २०१४ को, लिखी  गई. )

जीवन में, सुख  तो हो दाता,   थोड़ा सा दुःख,  इसमें, भर दो.
सुख का, मोल नहीं, दुःख बिन,  सुख – दुःख, मिश्रित, जीवन – वर, दो.
सुख में, सबकुछ  था, भूल गया,   सोचा नहीं, कुछ,  कर्तव्य हैं क्या ?
रचनाकार परमेश्वर को, ना याद किया,   करूं, बात  मैं,  क्या ?
अपना ही सुख,  अपनी, बातें,   कुछ काम सही,  कुछ गलत, किये.
पर – सेवा,  व्  उपकार दूर,   अपने ही लिये,  सब काम किये. 

दुःख भी, है जरुरी  उतना ही,   जितना, सुख को,  हम, मानते हैं.
दुःख,  नई दिशा दे,  जीवन को,   सुख से, ठहराव,  जो आते हैं.  
कभी – कभी,  दुःख  मूल्यवान,    सुख से, ज्यादा,  हो जाता है.
आत्म - निरिक्क्षण,  विश्लेषण  व्  सुधार,   का मौका  आता है.
दुःख में, जब मंजिल,  दूर लगे,   चेतन – मन,  उपाय खोजता है.
है, यदि चुनौती  जीवन में,   कठिनाइयों  से,  मन, सीखता  है.

जीवन – रण, में,  है विजय उनकी,  जो, सुख – दुःख, समझें, अपना ही.
बाधाएं,  सब  दूर  करेंगे,     सारा   जहाँ,  है,   अपना   ही.
कभी – कभी, है,  थोडा दुःख यदि,   परीक्षा,  जीवन – कौशल, की.
दुःख,  घुटने  टेकेगा,  अपने,   अंतिम विजय हो,   जीवन  की.
सारी,   अड़चन,   दूर  करेंगे,     जिम्मेदारी   है,   अपनी.
ना,  विचलित हों, कोशिश मन से,   होंगे, सफल, है जिद अपनी.

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